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१५८. अकालियोंका संघर्ष

लोगोंको यह आशा हो गई थी कि अकाली नेताओं और पंजाब सरकारके बीच सुलहकी जो बातें हो रही हैं, वे फलीभूत हो जायेंगी और गुरुद्वारेका मसला सन्तोषजनक रीतिसे हल होगा तथा अकालियोंके कष्ट-सहनका अन्त आ जायेगा। पर अगर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समितिकी खबर सच हो तो कहना होगा कि सरकारका मनसूबा कुछ और ही था। कहते हैं, अकाली नेता सब तरहसे तैयार थे, पर सरकार उन कैदियोंको छोड़ देनेका वायदा करने तकके लिए तैयार नहीं हुई, जिन्हें उसने इसलिए नहीं कि उन्होंने हिंसा-कृत्य किये थे या करनेकी कोशिश की थी, बल्कि इसलिए कैद कर रखा है कि उन्होंने गुरुद्वारा आन्दोलनमें योग दिया था।

ऐसी हालतमें बहुत मुमकिन है अकालियोंका संघर्ष और भी जोर-शोर के साथ चलाया जाये। सम्भव है, सरकार भी ज्यादा दमन करे। खुशकिस्मतीसे अब हम दमनके आदी हो गये हैं। उसका डर हमारे दिलसे निकल गया है। अकालियोंने दिखा दिया है कि वे किस धातुके बने हैं।

हमें देखना यह है कि अकाली जिस सवालको एक अहम धार्मिक सवाल मानते हैं, उसके लिए उन्होंने अबतक कितना कष्ट सहा है। ननकाना हत्याकाण्ड[१], कुंजी प्रकरण[२], गुरुका बागके पाशविक अत्याचार या जैतोंके गोलीबारके[३] बारेमें मैं यहाँ कुछ न कहूँगा। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समितिको गैरकानूनी करार देनेके बारेमें भी मैं कुछ नहीं कहूँगा। कांग्रेसने इसे उन तमाम सार्वजनिक संस्थाओंके लिए जो कि सरकारकी मुखालिफत करती हैं, एक चुनौती ही माना है। जैतोंके गोलीबारके बादसे, अकाली लोग यह समझकर कि गिरफ्तारियोंके लिए किया गया हमारा सत्याग्रह कहीं हिंसात्मक न समझा जाये, प्राय: हर पन्द्रहवें दिन ५०० आदमियोंका एक शहीदी जत्था गिरफ्तारीके लिए जैतों भेजते रहे हैं और बिना किसी हुज्जत या विरोधके गिरफ्तार होते गये हैं। गिरफ्तारीके बाद वे एक खास रेलगाड़ी में बिठाकर एक निर्जन स्थानमें भेज दिये जाते और वहाँ बिना मुकदमा चलाये तथा बिना किसी आरोपके रोक लिये जाते हैं। उन्हें सिर्फ रसद दे दी जाती है। उन्हें अपनी रसोई खुद पकानी होती है। वहाँकी आबोहवा फसली बुखारको लानेवाली मानी जाती है। और वहाँ इतनी घास खड़ी है कि वह जगह एक तरहका जेलखाना ही हो गया है। मुझे मालूम हुआ है कि कुछ लोग तो बुखार और सर्दी लग जानेसे मर भी गये हैं। इस तरह कोई तीन हजारसे ऊपर कैदी तकलीफ भोग रहे हैं। शहीदी जत्थेके अलावा पिछले ९ महीनोंसे २५ आदमियोंका एक छोटा जत्था भी रोज जैतोंकी हदमें जा रहा है। वे बावल नामके एक स्टेशनपर

 
  1. देखिए खण्ड १९, पृष्ठ ४०४-८।
  2. देखिए खण्ड २२, पृष्ठ १८१-८२।
  3. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ २२५-२६।