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तीन-चार मामले ऐसे हुए हैं। इस तरहकी एक घटनाका सीधा सबूत यही है। कि कहते हैं, श्री एन्ड्रयूजने एक खतना किये हुए आदमीको देखा था। मैंने उसकी तसदीक नहीं कराई।

(ख) कलमा पढ़ाकर; (१) जबरदस्ती; (२) महज डरसे कलमा पढ़ना, जिसमें दरअसल जबरदस्ती न की गई हो।

(ग) चोटी काटकर।

(घ) हिन्दू मर्दोको टोपी पहनाकर।

(ङ) हिन्दू औरतोंको कुरती पहनाकर।

(ख) से लेकर (ङ) तकमें तकरीबन १,८०० से २,००० लोगोंतक का (हिन्दुओं के अनुसार) धर्म-परिवर्तन किया गया। मुसलमान लोग इस संख्याको कुछ सौ बताते हैं।

मैंने सोचा कि मेरा वक्तव्य स्पष्ट है। यद्यपि मैंने श्री एन्ड्रयूजका नाम नहीं लिया था, लेकिन यह बात सबको मालूम थी कि उन्होंने खतनेके एक ऐसे मामलेका जिक्र किया है, जो उन्होंने खुद देखा था। इस बातपर ध्यान रखनेसे मेरा आशय समझनेमें कोई गलती नहीं हो सकती। पर अब मैं देखता हूँ कि मैंने जबरन् मुसलमान बनाये हुए आदमियोंकी तादाद कम बताकर लोगोंको, डा० महमूदपर पक्षपाती होनेका आरोप लगानेका अवसर दे दिया और इस तरह उन्हें बड़ी नाजुक स्थितिमें डाल दिया। अनजानेमें की गई अपनी इस गलतीपर मुझे अफसोस हैं। तनावके समय बहुत सावधानी रखना या बहुत तौलकर बात करना सम्भव नहीं होता। डा० महमूदके साथ न्याय करनेकी कोशिश करते हुए मुझसे उनके साथ अन्याय हो गया है। मैं पाठकोंको यकीन दिलाता हूँ कि हरएक मामलेमें मैंने वस्तुस्थितिके निकट ही रहनेकी कोशिश की है और मैंने कोई अतिरंजना नहीं की है। जो कागजात मेरे पास हैं उनके अनुसार तो सभी पक्ष बहुत अधिक और भयंकर रूपसे दोषी सिद्ध होते हैं। लेकिन हर मामलेमें मैंने इलज़ामोंको बहुत ही नरम रूपमें रखा है और जहाँ मैं अपनी राय कायम नहीं कर सका, वहाँ मैंने उन्हें सिर्फ सम्बन्धित पक्षोंकी जबानी पेश कर दिया और इस प्रकार उन इलज़ामोंको हलका बनाया।

निजामकी रियासतमें नहीं

हिन्दू-मुस्लिम तनाव सम्बन्धी अपने वक्तव्यमें मैंने कहा था कि मुझे यह बताया गया है उस खतरनाक प्रचार-पुस्तिकाके मुताबिक निजामकी रियासतमें कार्य हो रहा है।[१] उस वक्तव्यको पढ़नेपर ख्वाजा हसन निजामी साहबने मेरे पास नीचे लिखा तार भेजा है:

मेरी जिस पुस्तिका 'दार-ए-इस्लाम' में लिखी बातोंके सम्बन्धमें आपने अपने वक्तव्यमें शिकायत की है, उसके बारेमें में इस्लाम और हिन्दू-मुस्लिम

 
  1. देखिए "हिन्दू मुस्लिम तनाव: कारण और उपचार", २९-५-१९२४।
२४-२०