पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/३३७

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और इस बातको समझें कि उन्होंने प्रचारके आपत्तिजनक तरीके सुझाकर वास्तवमें इस्लामको हानि पहुँचाई है। इसलिए इस्लामके प्रचारमें जो कुछ जायज और प्रशंसनीय है उसकी दृष्टिसे उन्हें उस पुस्तिकामें आमूल परिवर्तन करना चाहिए। कहनेकी जरूरत नहीं कि जिस तत्परता से ख्वाजा साहब अपना मतलब समझाने के लिए आगे आये हैं और जिस तरह उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकताके लिए अपनी आतुरता व्यक्त की है, उसकी मैं सराहना करता हूँ।

मेरे लिए नई बात!

एक सज्जन लिखते हैं कि खबर है, आपने ऐसा कहा कि "सात बकरोंकी अपेक्षा एक गायकी बलि चढ़ाना ज्यादा अच्छा है।" फिर वे मुझसे कहते हैं कि या तो इस बातसे इनकार कीजिए या उसे मंजूर कीजिए; और यदि मंजूर करते हैं तो उस हालतमें उसका कारण भी बताइए। पत्र-प्रेषकने जिस बातका उल्लेख किया है, मुझे याद नहीं पड़ता कि वैसी कोई बात मैंने कभी कहीं थी; और जिस-किसीने मुझे वैसी बात कहते सुना हो वे उस अवसरकी याद मुझे दिला दें तो मैं कृतज्ञ होऊँगा। पत्र-प्रेषकके अनुसार ऐसा माना जाता है कि मैंने वह बात 'यंग इंडिया' के सम्पादककी हैसियतसे कही है। उस हालतमें तो वह मुझे आसानीसे दिखा दी जा सकती है। परन्तु मैंने जो-कुछ कहा या लिखा होगा, वह तो इतना ही हो सकता है कि यदि मैं लोगोंको अहिंसापूर्वक राजी कर सकूँ तो मैं उनको इस बातपर राजी करना चाहूँगा कि वे बकरोंकी भी उसी प्रकार रक्षा करें जिस प्रकार मैं चाहूँगा कि वे गायकी करें। जैसा कि मैं इन पृष्ठोंमें पहले लिख चुका हूँ, मेरे लिए मनुष्यसे नीचेकी श्रेणीके प्राणियोंमें गाय सबसे श्रेष्ठ है। मनुष्यसे नीचेकी श्रेणीके सभी प्रकारके प्राणियोंकी ओरसे वह सबसे श्रेष्ठ प्राणी, मनुष्यसे उनके प्रति न्याय करनेकी मूक प्रार्थना कर रही है। ऐसा लगता है जैसे वह अपनी कातर आँखोंसे (पाठक उन आँखोंकी ओर उसी संवेदनासे देखें जिस संवेदनासे मैं देखता हूँ) कह रही हो कि "तुम हमें मार डालने और हमारा गोश्त खाने या दूसरी तरहसे हमारे साथ बुरा बरताव करनेके लिए नहीं, बल्कि हमारे मित्र और संरक्षक बननेके लिए हमारे ऊपर तैनात किये गये हो।"

शाबाश, दिल्ली!

तो आखिर हिन्दू-मुस्लिम तनावके सम्बन्धमें दिल्लीने ही सबसे आगे बढ़कर पंच-फैसला बोर्ड संगठित किया। सिर्फ दो साल पहले हर आदमीको दिल्लीमें हिन्दू-मुस्लिम एकता पूरी तरह सुरक्षित दिखाई देती थी। हकीम साहब वहाँ बेताजके बादशाह थे और स्वामी श्रद्धानन्दकी स्थिति ऐसी थी कि वे जुम्मा मस्जिदमें मुसलमानोंके सामने खड़े होकर भाषण कर सकते थे। बेशक, यदि हिन्दू और मुसलमान मिल-जुलकर प्रयत्न करें तो उनमें इतनी क्षमता है कि वे दिल्लीमें दोनों जातियोंके बीच स्थायी रूपसे शान्ति स्थापित कर सकते हैं। यदि दिल्ली-जैसा केन्द्रस्थ स्थान ऐसी साम्प्रदायिक शान्ति स्थापित कर ले तो मुझे इस बातमें तनिक भी सन्देह नहीं कि