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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दूसरे स्थान भी उसका अनुकरण करेंगे। मुझमें इतनी हिम्मत नहीं कि पाठकोंके "ज्ञान-वर्धन" के लिए मैं दिल्लीसे प्राप्त उस सारे घातक साहित्यको प्रकाशित करूँ, जिसमें दोनों पक्षोंने एक-दूसरेका बहुत ही विकृत चित्र प्रस्तुत किया है। लेकिन पाठक इस बातके प्रति आश्वस्त रहें कि मैंने अपने वक्तव्यमें जो-कुछ कहा है, वह सब उस साहित्यमें मिल जायेगा। यदि सम्बन्धित पक्ष इतना-भर कर दें कि अपने-अपने आरोप बोर्डके सामने पेश कर दें और उनके बारेमें बोर्डका कोई अधिकृत निर्णय प्राप्त कर लें तो यह एक बहुत बड़ी नियामत साबित होगी।

सिखोंका आत्मसंयम

बहुत ही गम्भीर उत्तेजनाके बावजूद कलकत्तेके सिखोंने जिस आश्चर्यजनक आत्म-संयमका परिचय दिया, उसके लिए वे जनताकी हार्दिक बधाईके पात्र हैं। शोरगुल मचाती हुई शंकालु भीड़ने सर्वथा निराधार शंकाओंके वशीभूत होकर कलकत्तेमें कुछ सिखोंकी निर्मम हत्या भी कर दी थी। सभी स्थानोंके सिखोंमें इतनी क्षमता है कि वे अपनी रक्षा आप कर सकते हैं और अगर चाहें तो बदला भी ले सकते हैं। लेकिन इस अवसरपर वे बिलकुल शान्त रहे। वे बहादुर हैं, इसलिए उन्होंने महसूस कर लिया कि इस शरारतके पीछे कोई जातिगत विद्वेष नहीं है। आँख मूँदकर किसी बातका सहज ही विश्वास कर लेनेकी प्रवृत्तिसे ग्रस्त भीड़ने किसी और जातिपर शंका हो जानेपर भी उतनी ही लापरवाही से उसके सदस्योंकी भी हत्या कर दी होती। परीक्षा और उत्तेजनाके अवसरपर कलकत्तेके सिखोंने सही आचरणका एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है।

अधिकारियोंकी ढील

पाठकोंको स्मरण होगा कि नाभा राज्यके प्रशासकने मुझे जो जवाब दिया था, उसको देखनेके बाद पण्डित जवाहरलाल नेहरूने उन्हें एक पत्र लिखकर उनके इस कथनका खण्डन किया था कि उनकी तथा आचार्य गिडवानी[१] आदि उनके साथियोंकी रिहाई कुछ शर्तोंपर हुई थी। यह पत्र गत २४ मईको भेजा गया था। अब तक उसका जवाब न पाकर पण्डित नेहरूने १९ जूनको याददिहानीके तौरपर एक दूसरा पत्र लिखा है। वह नीचे दिया जा रहा है:

२४ मईको मैंने आपको रजिस्ट्रीसे एक पत्र भेजा था, जिसमें मैंने आपसे यह अनुरोध किया था कि आचार्य गिडवानी और श्री के० सन्तानम् तथा मेरी सजाको रद करनेके आदेशकी और यदि उस समय हम लोगोंके बारेमें कोई और आदेश जारी किया गया हो तो उसकी भी प्रतियाँ मुझे भेज दी जायें। अबतक न मुझे पत्रका कोई उत्तर मिला है और न आदेशोंकी प्रतियाँ ही।

मुझे इस बातमें कोई सन्देह नहीं है कि 'यंग इंडिया' के सम्पादक महोदयको आपने अपना इस आशयका जो वक्तव्य भेजा है कि आचार्य गिडवानी,

 
  1. देखिए "टिप्पणियाँ", ५-६-१९२४, उपशीर्षक 'आचार्य गिडवानीके बारेमें'।