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श्री सन्तानम् और मैं कुछ शर्तोंपर रिहा किये गये थे, वह बिलकुल गलत है और उन आदेशोंका तथा दूसरे कागज-पत्रोंका मुलाहिजा करनेसे आपको भी इस बातका यकीन हो गया होगा। मुझे भरोसा है कि इस बातका यकीन हो जानेसे आप पिछले वक्तव्यको शीघ्र दुरुस्त करेंगे और इस बातको साफ कर देंगे कि आचार्य गिडवानी और सन्तानम्की तथा मेरी रिहाई बिना किसी शर्त हुई थी। इसलिए आचार्य गिडवानीको फिरसे मुकदमा चलाये बिना और सजा दिये बगैर कोई शर्त तोड़नेके कथित अपराधपर जेल नहीं भेजा जा सकता; क्योंकि शर्त रखी ही नहीं गई थी।

मैं आपसे फिर अनुरोध करता हूँ कि आप सजा रद करनेवाले आदेशकी एक नकल मुझे भेज दें। मैं आपसे यह भी साफ-साफ जान लेना चाहता हूँ कि क्या नाभा राज्यकी हदमें मुझे प्रवेश करनेकी मनाही है और अगर है तो किस आदेशके मुताबिक। अभी फिलहाल तो नाभा जानेका मेरा कोई इरादा नहीं है, पर अगर मेरी इच्छा वहाँ जानेकी हो गई तो मैं जानना चाहता हूँ कि मेरा स्वागत वहाँ किस तरह किया जायेगा।

हमें आशा करनी चाहिए कि पं० जवाहरलाल नेहरूके इस सीधे सवालका उत्तर मिलने में अब और देर न होगी। अमूमन अधिकारीगण लोगोंकी पूछताछका जवाब देनेमें बेजा देरी करते हैं---खासकर उस हालतमें जब ऐसी पूछताछ परेशानी पैदा करनेवाली होती है। अगर इसका जवाब न मिला या असन्तोषजनक ही मिला तो वैसी हालतमें सम्भव है कि पण्डित जवाहरलाल नेहरू और श्री सन्तानम् कार्यसमितिसे इस बातकी इजाजत चाहें कि उन्हें वहाँ जाकर गिरफ्तार होने दिया जाये। अपने एक साथीके प्रति कर्त्तव्यके खयालसे भी ऐसा करना आवश्यक हो सकता है। पण्डित नेहरूके पत्रके आखिरी हिस्सेमें तो स्पष्टतः उनकी तरफसे ऐसी चुनौतीकी भनक मिलती है। यह बात कुछ समझमें आने लायक नहीं है कि जब आचार्य गिडवानीके जेतों हत्या-काण्डके अवसरपर नाभा राज्यमें प्रवेश करते समय सविनय अवज्ञासे उनका कोई सम्बन्ध नहीं था तब उन्हें जेलमे क्यों रखा जाये। उन्होंने केवल मानव धर्मकी भावनासे प्रेरित होकर ऐसा किया था और इसके लिए श्री जिमंड-जैसे निष्पक्ष व्यक्तिकी गवाही मौजूद है।

नगरपालिकाएँ

एक स्थानीय कांग्रेस कमेटीके मन्त्री लिखते हैं:

आपने लोगोंसे इन (सरकारी) संस्थाओंसे अलग रहनेका आग्रह तो किया है किन्तु आपने उन लोगोंके बारेमें कुछ भी नहीं कहा जिन्होंने जिला बोर्डो और नगरपालिकाओंपर कब्जा कर रखा है। मैं जानता हूँ कि अपरिवर्तनवादियोंमें भी बहुत-से ऐसे लोग हैं जो अब भी यही मानते हैं कि उनके जिला बोर्डों और अर्ध-सरकारी संस्थाओंमें जानेसे असहयोगके सिद्धान्तमें कोई