पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/३४१

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तो उसके लिए वे पूरी तरह आजाद हैं। लेकिन कोई मेरी बातोंको गलत रूपमें पेश करे, यह चीज निश्चय ही मुझे नापसन्द है। अगर वे छापने के पहले मुझे दिखा दें तो मुझे कोई एतराज न हो। तथाकथित भेंटका छपा हुआ विवरण, मैंने जो-कुछ कहा उसका विकृत रूप है। मिसालके तौरपर उसमें कहा गया है कि मैंने "हर मुसलमानको लफंगा" बताया है। मैंने तो कभी सपनेमें भी यह खयाल न किया होगा कि हर मुसलमान लफंगा है। मैं हकीम साहबको लफंगा नहीं मानता; और हकीम साहब ही क्यों, मैं अपने इतने सारे मुसलमान दोस्तोंमें से किसीको भी लफंगा नहीं मानता। मैं कितने ही उद्दण्ड मुसलमानोंको जानता हूँ, लेकिन ऐसा याद नहीं आता कि लफंगा शब्दका जो स्वीकृत अर्थ है उस अर्थको चरितार्थ करनेवाले किसी लफंगे मुसलमानसे मैं मिला होऊँ। और वैसे मैं हर मुसलमानको उद्दण्ड भी नहीं समझता। मुझपर यह कहनेका इलजाम लगाया गया है कि "सरकार अभी तो मेरी उतनी परवाह नहीं कर रही है, पर ज्यों ही मैंने देशमें छः महीनेका एक दौरा किया कि उसकी रूह काँप उठेगी।" अब इसपर मेरा कहना यह है कि एक ओर जहाँ बड़े अभिमानके साथ मैं यह मानता हूँ कि सरकार कभी मेरी बातों और कामोंको उदा- सीनताकी दृष्टिसे नहीं देखती और वहीं दूसरी ओर मुझमें इतनी विनम्रता है कि मैं ऐसा न मानूँ कि मेरे किसी दौरेसे उसकी रूह काँप उठेगी। हाँ, अगर किसीकी भी कोशिशसे सच्ची हिन्दू-मुस्लिम एकता कायम हो जाये तो उसकी रूह जरूर काँप उठेगी। मुलाकात करनेवाले सज्जनने एक खद्दर कार्यकर्ताकी धोखेबाजीकी भी चर्चा की है। यह तो किसीके सौजन्यका सरासर दुरुपयोग करना है। बात यह हुई कि मैंने उन्हें उस बातचीत के दौरान मौजूद रहने दिया जो मैं अपने कुछ साथी कार्यकर्ताओंसे कर रहा था। उस दौरान किसी कथित धोखेबाजीकी भी चर्चा हुई थी। मुझे अबतक पता नहीं चला है कि दरअसल ऐसी कोई धोखेबाजी कहीं की भी गई थी या नहीं। मैंने यहाँ कुछ जबरदस्त गलतबयानियोंके नमूने सामने रखे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि "मुलाकाती सज्जन" ने सदाशयतासे ही ये बातें लिखी हैं, लेकिन अपनी जिम्मेदारीको न समझकर काम करनेवाले ऐसे सदाशय मित्र दुराशय प्रतिपक्षियोंसे भी ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं। अतएव जो लोग मुझसे मिलने आते हैं उनसे मेरी प्रार्थना है कि जबतक मैं एक जिम्मेदारी सँभाले हुआ हूँ, तबतक वे मुझपर मेहरबानी रखे रहें। मेरे इस जिम्मेदारीसे मुक्त हो जानेपर वे मेरे लेखों और कार्योंके सम्बन्धमें जैसा चाहें वैसा करें। मेरी मुलाकात या बातचीतका विवरण पढ़नेवाले लोगोंसे भी मेरा निवेदन है कि वे तबतक उन्हें विश्वसनीय न मानें जबतक उन्हें मैंने प्रमाणित न कर दिया हो।

मशीन-कताई बनाम हाथ-कताई

एक मित्रने जो किसी समय चरखेके बड़े भारी समर्थक थे नीचे लिखे आशयका पत्र भेजा है।

आपकी यह [ चरखा सम्बन्धी ] हलचल फिजूल है। आप 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' में पुरानी और बासी बातें भरनेमें अपने शरीर और मनकी