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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शक्ति क्यों खर्च कर रहे हैं? मुझे उनको पढ़नेमें सार दिखाई नहीं देता? मैंने अनुभवसे देखा है कि चरखा किसी कामका नहीं है। लोगोंने उत्साहकी पहली लहरमें जो चरखे खरीदे, वे अब पड़े-पड़े सड़ रहे हैं। उनसे कोई काम नहीं बननेका।

मैं आपका ध्यान एक दूसरी बातकी ओर दिलाना चाहता हूँ, जो उससे बेहतर है। हाथ कताईकी जगह मशीन-कताई शुरू कर दीजिए। हरएक ताल्लुकेमें एक कताई कारखाना खोल दिया जाये और उसका मुनाफा राष्ट्रकी सम्पत्ति माना जाये। कारखानोंको सिर्फ देशभक्त लोग ही चलायें; अपने लाभके लिए नहीं, बल्कि देश-प्रेमसे प्रेरित होकर। सूत सिर्फ मुकामी बुनकरोंमें ही बाँटा जाये। जो कपड़ा तैयार हो, वह उसी ताल्लुकेमें रहे। इससे समय और किरायेकी फिजूलखर्ची बच जायेगी। आप यदि पहले एक ताल्लुकेमें इसकी आजमाइश करें तो वह देशको बड़ी सेवा होगी।

यह दलील ऊपरसे अच्छी दिखाई देती है और ऐसे आदमीकी तरफसे पेश की गई है, जिन्होंने अपने ढंगसे चरखेको आजमाकर देखा है; इसलिए मैं उन लोगोंके लिए, जो इसी किस्मके विचार रखते हों, इस दलीलकी जाँच करना चाहता हूँ। पाठकों को यह बतलानेकी जरूरत नहीं है कि यह तजवीज उतनी ही पुरानी है जितना कि खादी-आन्दोलन। कहावतके खोटे सिक्केकी तरह वह फिर-फिर कर वापस आती है।

यह मित्र इस मूलभूत सत्यको भूल गये हैं कि चरखेके द्वारा उन करोड़ों लोगोंको एक काम और उसके जरिये कुछ आमदनी मिल जाती है, जिनको फाकाकशीसे बचनेके लिए अतिरिक्त आमदनीकी जरूरत है। हर घरमें करघा रखना नामुमकिन है। हर गाँवमें एक करघा और हर घरमें एक चरखा, यह नियम होना चाहिए। यदि हरएक ताल्लुकेमें एक कताईका कारखाना खड़ा करें तो इसका नतीजा यही होगा कि मुट्ठी-भर लोगों द्वारा बहुतसे लोगोंके शोषणको राष्ट्रीय रूप मिल जायेगा। ताल्लुका-मिलोंमें सब लोगोंको काम नहीं मिल सकता। इसके अलावा हमको कमसे-कम २,००० ताल्लुकोंके लिए मशीनें बाहरसे मँगानी होंगी। फिर, लोगोंको उनकी व्यवस्था और कामकी तालीम देकर विशेषज्ञ बनाना होगा। कल-कारखाने घास-पातकी तरह अपने-आप हर जगह नहीं फैल सकते, पर चरखे फैल सकते हैं। चरखेकी नाकामयाबीका असर किसीपर नहीं होता; परन्तु एक ताल्लुकेके कारखानेकी असफलतासे उस ताल्लुकेके लोगोंपर मुसीबत आ जायेगी। मेरी रायमें इन मित्रकी बात बिलकुल अव्यावहारिक है। फिर भी मैंने उनसे कहा है कि अगर इसपर उनकी श्रद्धा हो तो वे इसे आजमाकर देखें। मुझे तो अपनी ही नाव खेनी हैं; क्योंकि दूसरी कोई चीज मुझे आकर्षित नहीं करती। मेरे लिए तो चरखेका निराला ही जादू है।

हो सकता है कि मैं इतना जड़ होऊँ कि मुझे उसकी असफलता नजर ही नहीं आती। वैसे यह बात नहीं कि यदि कोई मुझे मेरी गलती दिखा सके तो मैं उसे देखने को तैयार नहीं हूँ।