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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहा कि मैं अपना प्रस्ताव पेश करते हुए कांग्रेस संविधानसे बाहर नहीं जा रहा हूँ। धारा २१ और ३१में, जिनका आश्रय पण्डित मोतीलाल नेहरू तथा श्री दास ले रहे हैं, कुछ शर्तें दी गई हैं। मेरे विचारमें इससे शर्तोंका उल्लंघन नहीं होता। मैं यह मानता हूँ कि जब कांग्रेसका अधिवेशन नहीं हो रहा होता तब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को पूरे अधिकार प्राप्त रहते हैं। मेरे प्रस्तावोंसे चुनावका अधिकार सीमित नहीं होता; उनमें तो निर्वाचकोंको केवल आवश्यक कार्रवाई करनेकी सलाह दी गई है।

उन्होंने आगे कहा कि इस तरहके नियम, जिनमें सदस्योंसे कांग्रेसके कार्यक्रमपर सुचारु रूपमें अमल करानेकी व्यवस्था हो, बनानेका पूरा अधिकार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटोको ही है। निश्चय ही निर्वाचकोंको अपना प्रतिनिधि चुननेका निर्बाध और पूरा अधिकार है। किन्तु वे एक बार चुनाव हो जानेपर अपने प्रतिनिधियोंके आचरणपर किसी प्रकार भी नियन्त्रण नहीं रख सकते। केवल अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ही ऐसा कर सकती है। निस्सन्देह इस कमेटीका यह कर्त्तव्य है कि वह कोकानाडामें पास किये गये कांग्रेसके प्रस्तावोंपर अमल करानेकी दिशामें आनेवाली सभी रुकावटों को दूर करे। इन प्रस्तावोंमें असहयोग कार्यक्रमको पूर्णरूपसे स्वीकार किया गया है और उनसे कार्य करनेकी पद्धतिका सुचारु संचालन सुनिश्चित हो जाता है। यदि यह दलील दी जाये कि प्रान्तीय कमेटियोंको सदस्यता की शर्ते लगानेके उद्देश्यसे अपने नियम स्वयं बनानेका अधिकार है तो इसीसे यह अर्थ निकलता है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीको भी, जो सारी सत्ताका मूल स्रोत है, अपनी सदस्यतापर शर्तें लगानेका वैसा ही अधिकार है।[१]

श्री गांधी भाषण जारी रखते हुए कहा कि एक नई स्थिति उत्पन्न हो गई है। कांग्रेसने कुछ प्रस्ताव पास किये हैं। अब अ० भा० कांग्रेस कमेटीको उनपर अमल कराना है। भूतपूर्व अध्यक्षोंके बारेमें मेरा कहना है कि उन्हें भी सलाह तो दी जा सकती है। यदि प्रान्तीय कांग्रेस कमेटियाँ अपने नियम आप बनायें तो अ० भा० कांग्रेस कमेटीको अपने नियम बनानेका और भी विशेष और विस्तृत अधिकार है। इसलिए मेरे प्रस्ताव किसी भी प्रकार नियम विरुद्ध नहीं हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २८-६-१९२४
 
  1. पद अनुच्छेद हिन्दूके विशेष संवाददाताकी रिपोर्टसे लिया गया है।