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१६१. पत्र: एक शोकाकुल पिताको

२८ जून, १९२४

प्रिय मित्र,

मेरे पुत्रको लिखे गये जॉर्ज जोज़ेफके पत्रसे मालूम हुआ कि ऐसे समय जब आपका बहादुर बेटा कृष्णसामी जेलमें है, आपकी बेटी नहीं रही। मुझे यह भी मालूम हुआ है कि आपका एक लड़का पागल है। चार पुत्रोंका पिता होनेके कारण मैं इस शोकावस्थामें आपकी दशाको समझ सकता हूँ। ईश्वरमें हमारा विश्वास केवल तभी सिद्ध होता है जब हम इस प्रकारका शोक सहन करनेमें समर्थ बनते हैं; शोकको मौन होकर सहना हमारे विश्वासका दृढ़तर प्रमाण प्रस्तुत करता है। ईश्वर आपको इसके लिए आवश्यक बल दे। जब मैं आफ्रिकी जेलोंमें तमिल सीख रहा था, तब मैंने तमिलकी यह सुन्दर लोकोक्ति पढ़ी थी, "जो असहाय हैं, उनका एकमात्र सहायक ईश्वर ही होता है।"[१] मैं तमिल लगभग भूल गया हूँ, किन्तु इस कहावतकी मधुर ध्वनि मेरे कानोंमें आज भी गूँज रही है। इससे मुझे अक्सर बल मिलता है। ईश्वर करे इससे आपको भी बल मिले।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० ६८३३ ) की फोटो-नकलसे।

१६२. भाषण: अ० भा० कां० कमेटीकी बैठकमें

अहमदाबाद
२८ जून, १९२४

भाइयों,

मैंने अपने उत्तरदायित्वको भली भाँति समझकर ही इन प्रस्तावोंका मसविदा तैयार करके यहाँ आपके सामने उन्हें पेश करनेकी जिम्मेदारी ली है। सौभाग्यसे अथवा दुर्भाग्यसे मैं कार्यकारिणी समितिके[२] सदस्योंमें से अधिकांश लोगोंको इन प्रस्तावोंके पक्षमें तैयार कर सका हूँ, मुझे जो-कुछ कहना था उसके विषयमें मैं 'यंग इंडिया' में लगभग सभी कुछ लिख चुका हूँ। इसलिए अब इन प्रस्तावोंको पेश करते समय मेरे पास कहनेके लिए कुछ विशेष नहीं बचा है। यह बात मेरे ध्यानमें है कि मैं जिन प्रस्तावोंको पेश करने जा रहा हूँ उनके सम्बन्धमें लोगोंमें भारी

 
  1. गांधीजीने यहांपर तमिल लिपिमें लिखा है: 'दिक्कट्वर्कु दैवमे तुणै'।
  2. जिसकी बैठक २६ जूनको हुई थी।