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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मतभेद उठ खड़ा हुआ है और परस्पर बहुत अधिक कटुता उत्पन्न हो गई है। इतना ही नहीं इन मतभेदोंको लेकर आजतक के साथी हमसे बिछुड़ जायें, इस बातकी नौबत आ सकती है। और मैं इस सम्भावनासे बेखबर नहीं हूँ। मैंने यहाँ "साथी" शब्दका प्रयोग जान-बूझकर किया है, क्योंकि "मित्रता" एक ऐसी डोरी है जिसे चाहे जितना खींचें वह कभी टूटती नहीं। उसका यही स्वभाव है। और मैं यह बताये देता हूँ कि देशबन्धु[१], पण्डित मोतीलाल, मौलाना आजाद और अन्य अनेक लोग आज भले ही मेरे विरुद्ध खड़े हुए दिखाई देते हों; लेकिन इससे हमारे बीच मित्रताका जो सम्बन्ध है वह कभी टूटनेवाला नहीं है। जिस मनुष्यको सार्वजनिक जीवनमें भाग लेना है उसे समय आनेपर अपने निकटतम मित्रोंसे अलग होने और नये साथियोंकी तलाश करनी पड़ सकती है। ऐसा प्रसंग उपस्थित होनेपर उसका सामना नम्रतासे परन्तु दृढ़तापूर्वक करना चाहिए। मालवीयजी और मैं दोनों विरोधी दलोंमें हैं; लेकिन इससे कोई यह नहीं कह सकता कि हमारी मित्रतामें कभी कोई कमी आई है।

मतभेद होने पर दो मित्रोंमें परस्पर मैत्री भी अवश्य टूट जानी चाहिए-- ऐसा मानना तो गम्भीर भूल है। हाँ, इससे एक साथ मिलकर काम करनेका सुयोग अवश्य खतम हो जाता है, फिर भी हमारे साथके बारेमें चाहे कुछ भी कहा जाये, इतिहास इस बातकी साक्षी अवश्य देगा कि हमारी मित्रता जैसी थी वैसी ही अखण्डित रही है।

मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप मेरे इन प्रस्तावोंपर इस तरहकी भावना मनमें रखकर ही विचार करें। देशमें जैसी स्थिति है मुझे उसकी झाँकी कल मिली। मैंने कई वर्षोंतक वकालत की है और मेरा अनुभव है कि लोग जब एक बार किसी मुद्दे पर अपनी राय कायम कर लेते हैं तब उसके विरोध अथवा समर्थनमें तरह-तरहकी कानूनी बारीकियाँ ढूँढ़ निकालनेमें दिक्कत नहीं पड़ती और इसी कारण मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि मैंने अपने प्रस्तावोंके विधि सम्मत होनेके पक्षमें जो दलीलें दी हैं यदि वे भी मेरे तत्सम्बन्धी दृष्टिकोणसे रंगी हुई हों तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात न होगी। मैं यह स्वीकार करनेके लिए भी तैयार हूँ कि मुझसे मतभेद रखनेवाले सज्जन, जो मेरे इन प्रस्तावोंको कांग्रेसके संविधानके नियमोंका उल्लंघन करनेवाला मानते हैं और इसलिए उन्हें अवैध कहते हैं, वे प्रामाणिक रूपसे ऐसा मानते हैं।

श्री श्रीनिवास आयंगार[२] और मेरे बीच घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। हमारे बीच निकटतम मैत्रीका नाता है, ऐसा मैं कह सकता हूँ। उन्होंने आज सुबह मेरे पास आकर मुझसे पूछा, "आपने कहीं यह तो नहीं कहा है, यदि दोनों पक्षोंके मत समान आयें तो मैं कांग्रेससे निकल जाऊँगा?" मैंने यह बात कही तो है; तथापि मैं इन प्रस्तावोंको पेश करने का आग्रह रखता हूँ । इसका कारण यह है कि मैं, आप और सारा देश इस समय कहाँ है---मैं यह बात जान लेनेके लिए उत्सुक हूँ। यदि मैं यह देखूँ कि इससे झगड़ा-फसाद ही बढेगा और कड़वाहटके अलावा कुछ हाथ नहीं

 
  1. चित्तरंजन दास।
  2. मद्रासके वकील और कांग्रेसी कार्यकर्ता, १९२६ में गोहाटी कांग्रेस अधिवेशनके अध्यक्ष।