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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ही हम देशके आम लोगोंके साथ निकटताका सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं। आप विधान परिषदों अथवा अदालतोंमें जाकर देशको सूत्रबद्ध नहीं कर सकेंगे।

अभी कल ही एक देशी मजिस्ट्रेटने एक नौजवान असहयोगीको[१] जेल भेजा है। जो सरकार हमें कुचल डालना चाहती है मैं तो उसके दमनकी कुछ भी परवाह न करनेवाले हजारों नौजवानोंको कटिबद्ध खड़ा देखना चाहता हूँ। मैं तो मातृभूमिकी वेदीपर दस हजार प्रागजी-जैसे युवकोंकी आहुति देनेके लिए तैयार हूँ, क्योंकि मैं देखता हूँ कि सरकारकी अदालतोंकी ऐसी अवमानना करना हम लोगोंके लिए जरूरी हो गया है। मैं बिना किसी संकोचके कहना चाहता हूँ कि यदि हम ऐसा कर सकें तो इस नौकरशाहीके लिए लोगोंकी भावनाओंको इस प्रकार गर्वपूर्वक कुचलना असम्भव हो जाये। मुझे लगता है, हमें सरकारको यह दिखा देनेकी जरूरत है कि वह हमको कुचल नहीं सकती और कुचलनेकी हिम्मत भी नहीं कर सकती।

पण्डितजी[२] स्वयं भी जानते हैं कि अकेली विधान परिषदें स्वराज्य दिलानेके लिए पर्याप्त नहीं। पण्डितजीके मतानुसार विधान परिषदें सब कुछ नहीं हैं। वे भी चाहते हैं कि सारा देश उनके पीछे रहे। वे चाहते हैं कि सविनय अवज्ञाके उत्साहसे उद्वेलित जनसमुदाय उनके पीछे चले ताकि वे अपने विधान परिषदोंके कार्यको प्रभावकारी बना सके। मैं कहता हूँ कि इस सम्बन्धमें उनका विधान परिषदोंमें किया गया कार्यं कुछ अधिक लाभप्रद नहीं हो सकता। हममें से कुछ लोगोंके जीवनमें विधान परिषदें भले ही महत्वपूर्ण स्थान रखती हों; परन्तु तीस करोड़ लोगोंके जीवनकी दृष्टिसे इनका कोई महत्व नहीं है और मैं आपसे इन तीस करोड़ लोगोंके जीवनको ध्यानमें रखकर ही इन प्रस्तावोंपर विचार करनेकी प्रार्थना कर रहा हूँ। क्या आप अपने लाखों और करोड़ों देशी भाइयों और बहनोंके जीवनमें प्राण फूँकनेके लिए उत्सुक हैं? क्या आपको गाँवोंमें बसी हुई इस गरीब प्रजाके बीच जाकर उसे सुसंगठित नहीं करना चाहिए? आप उस स्थितिकी कल्पना करें जब ५,००० लोग बड़ी-बड़ी सभाओं का आयोजन करके उनमें लम्बे-लम्बे भाषण देनेके बजाय गाँव-गाँव कातने और पींजनेवालोंके रूपमें फेरी लगायेंगे और स्वयं धुनकर और कातकर लोगों को हिन्दुस्तानकी खातिर सूत कातने के लिए कहेंगे। श्रद्धा और बुद्धिकी प्रखरताके बिना यह चित्र आपके हृदयपर खिंच नहीं सकता। चरखा हिन्दुस्तानकी तीस करोड़ जनताके साथ आपको एक सूत्रमें बांधनेवाली कामधेनु है और यदि आप लोगोंके साथ इतना निकटताका नाता जोड़ना चाहते हों तो आपको इस कसौटी पर खरा उतरना ही होगा।

आप तनिक विचार करके देखें। एकमात्र चरखा ही निम्नसे-निम्न देशवासियोंसे हमारा नाता जोड़ता है। मैं चरखेको एक व्यर्थकी देवमूर्ति नहीं बना देना चाहता। यदि मुझे दिखाई दे कि यह स्वराज्य प्राप्तिके कार्यमें विघ्नरूप है तो मैं उसे तुरन्त जला दूँगा। मैं इस तरहसे मूर्तिभंजक भी हूँ और इस अर्थमें मुसलमान हूँ, तथापि

 
  1. प्रागजी देसाई।
  2. पं० मोतीलाल नेहरू।