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कुछ प्रश्न

६. यदि कार्यकर्त्ताको जहाँ-जहाँ जाये वहाँ-वहाँ आतिथ्यकी अपेक्षा हो तो?

तब तो कार्यकर्त्ताको अपना पद छोड़ ही देना चाहिए। मैंने सुना है कि कुछ गाँवोंमें तो लोग स्वयंसेवक या कार्यकर्त्ताके नामसे ही काँपने लगे थे। कहते हैं कार्यकर्त्तागण मिष्टान्न, ठंडा पानी, नरम बिस्तर आदि अनेक प्रकारकी सुविधाएँ माँगते थे और इसलिए बेचारे ग्रामवासियोंको कार्यकर्त्तासे सेवा लेनेके बदले उसकी सेवा करनी पड़ती थी।

कार्यकर्त्ताकी स्थिति तो यह होनी चाहिए कि वह गाँवके लिए भार-स्वरूप कदापि न बने। वह अपना खाना अपने साथ बाँधकर ले जाये। गाँववालोंसे मात्र निर्मल जलकी अपेक्षा करें। उसके साथ लोटा तो होना ही चाहिए, ताकि तालाब, नदी अथवा कुँआ दीख पड़नेपर वहाँ जाकर स्वयं ही पानी भर ले। जहाँ स्वच्छ भूमि मिले वहीं विश्राम कर ले। उसे पलंग और गद्दे शोभा नहीं देते। वह सेवाकी अपेक्षा नहीं रखता। क्योंकि वह तो स्वयं ही लोगोंकी सेवा करनेके लिए निकला है। इसलिए वह आतिथ्यके अभावमें निराश नहीं होता। वह हुक्म देने नहीं, हुक्म बजाने के लिए जाता है। इसलिए उसे सबसे अत्यन्त नम्रतापूर्वक बोलना चाहिए। उसे सेवाका काम भाता है और वह उसकी आत्माका आहार बन जाता है। अतः यदि उसे बदलेमें गालियाँ मिलती हैं तो भी वह सेवा करता रहे। "अवगुण बदले गुण करे, सो नर ज्ञानी जान"--- यह अनुभवी और व्यवहारकुशल कविकी वाणी है। प्रत्येक कार्यकर्त्ताको ऐसा ज्ञानी होना चाहिए। हमें गुजरातमें और कई अन्य भागोंमें सफलता नहीं मिली है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हम स्वयं अपनेको सेवक कहते हैं, किन्तु दूसरोंसे आशा यह रखते हैं कि वे हमें स्वामी मानें, हम अपना नाम कार्यकर्त्ताओंमें लिखते हैं और अपना काम दूसरोंसे करवाते हैं।

हम ग्रामीणोंपर भार-स्वरूप न हों, मैं ऐसा बराबर लिखता आ रहा हूँ; किन्तु इससे कोई यह न समझे कि हमें गन्दगी सहन करनी है। मैं ऐसे कुछ आलसी कार्यकर्त्ताओंको जानता हूँ जो स्वयं बहुत मैले रहते हैं और यदि साफ स्थानोंपर जाते हैं तो उन्हें भी गन्दा कर देते हैं। सेवकके लिए जिस तरह मरते दमतक अपनी स्वच्छता बनाये रखना जरूरी है उसके लिए उसी तरह बाह्य स्वच्छताको बनाये रखना भी जरूरी है। हमारे कपड़ोंमें भले ही पचास पैबन्द लगे हों, परन्तु वे साफ अवश्य हों। हमारा लोटा दर्पणके समान स्वच्छ होना चाहिए। यदि कार्यकर्त्ता जिस स्थानपर जाये वह मलिन हो तो उसे उसको स्वच्छ करके लोगोंको स्वच्छताका पदार्थपाठ पढ़ाना चाहिए। पाखाना गन्दा हो तो वह उसे अपने हाथोंसे साफ करे। यदि वह जंगलमें जाये तो अपने साथ छोटी कुदाली ले जाये और शौचसे पहले और बादमें उसका उपयोग करे। यदि हम मैलेको साफ मिट्टी से ढँक दिया करें तो मक्खियों और अन्य जीवोंका उपद्रव कम हो जाये और लोगोंके शरीर-स्वास्थ्यमें वृद्धि हो। कार्यकर्त्ताओंको आरोग्यके नियमोंका ज्ञान अवश्य होना चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २९-६-१९२४