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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऐसी अस्पृश्यता आत्मघाती है। यह असहिष्णुताकी पराकाष्ठा है। इसे दूर करनेका प्रयत्न करना और इस प्रयत्नमें अपने प्राण देना हरएक हिन्दूका परम धर्म है। मुझे इस विषयमें जरा भी सन्देह नहीं रह गया है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २९-६-१९२४

१६७. प्रागजी और सूरत

"हूई तेरी सूरत बेहाल, आज सूरत तू रोता है।"

सूरतके मजिस्ट्रेटने प्रागजी खण्डुभाई देसाईको दो वर्ष, तीन महीनेकी कैद दे कर उन्हें सरकारी मेहमानके रूपमें आमन्त्रित किया है। वे अब मेरे पड़ोसी हो गये हैं।[१] वे साबरमती जेलमें कबतक सरकारके अतिथि बने रहेंगे सो तो सरकार जाने।

यदि प्रागजी शुद्ध सत्याग्रही हैं तो उन्होंने खोया कुछ नहीं है; वे झंझटोंसे छूट गये हैं, और फिर भी देशकी पर्याप्त सेवा कर सकते हैं। ऐसी मेरी दृढ़ मान्यता है। इसलिए उन्हें तो मैं बधाई ही देता हूँ।

जिस लेखपर उन्हें कैदकी सजा दी गई है वह लेख इस समय मेरे पास नहीं है, इसलिए मैं उसपर अपनी निश्चित राय नहीं दे सकता। सच्ची बधाईके पात्र तो केवल वे लोग ही हैं जो शुद्ध स्फटिक मणिकी भाँति निर्दोष होते हुए भी जेल जाते हैं। इसमें भ्रमकी कोई गुंजाइश नहीं है।

तथापि मैं इतना तो जानता हूँ कि प्रागजीको कैदकी सजा देनेवाली सरकार निष्पक्ष नहीं है। यदि प्रागजीका लेख मैं लिखता तो मैं अभिमानपूर्वक कह सकता हूँ कि सरकार मुझे जेल न भेजती। लेकिन मैं निरभिमान रहकर इतना तो कह ही सकता हूँ कि उसी लेखपर वह श्री शास्त्रियरको[२] भी जेल नहीं भेजेगी। और यदि कोई अंग्रेज इससे भी कड़ा लेख लिखे तो उसे तो सरकारकी ओरसे बधाई ही मिलेगी। अतः सामान्य दृष्टिसे देखें तो प्रागजी बिलकुल निर्दोष हैं। उनके मनमें लोगोंको टेढ़े रास्ते पर चलनेके लिए उकसानेका खयालतक भी न था, यह मैं जानता हूँ। इसलिए यह अन्ततः प्रागजीके लिए श्रेयस्कर ही है। प्रागजीको जेलका अनुभव है। वे दक्षिण आफ्रिकामें जेलोंका काफी अनुभव प्राप्त कर चुके हैं। वे कष्टोंसे डरनेवाले व्यक्ति नहीं हैं। उनका स्वदेशाभिमान उच्च कोटिका है।

फिर भी मैंने सूरतके सम्बन्धमें कवि नर्मदाशंकरकी[३] उपर्युक्त कड़ी क्यों उद्धृत की है? इसका कारण यह है कि सूरत आज मुझे निस्तेज-सा जान पड़ता है। प्रागजी सूरतके प्रख्यात सेवकोंमें से हैं। उनसे सूरत अपरिचित नहीं है। प्रागजी-जैसे

 
  1. साबरमती जेल, आश्रमके समीप ही है।
  2. वी० एस० श्रीनिवास शास्त्री।
  3. १९ वीं शताब्दीके गुजराती कवि जो अपनी देशभक्तिपूर्ण रचनाओंके लिए प्रसिद्ध थे।