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खुदाका गुनाह या कुदरतका?

व्यक्तिके जेल जानेसे इन दो स्थितियोंमें से एक स्थिति उत्पन्न होनी चाहिए थी---या तो उनके पीछे बहुतसे लोग जेल जानेकी बात सोचें और जेल जायें या सूरतके लोग रचनात्मक कार्यमें जुट जायें। लेकिन आज तो सूरत सोया हुआ जान पड़ता है। सूरतपर ४०,००० रुपयेका जुर्माना किया गया है।[१] सूरत इसे अभीतक पिये बैठा है। सूरतके राष्ट्रीय स्कूलों की स्थिति त्रिशंकु जैसी है। सूरतकी कांग्रेसकी तिजौरीमें पैसा नहीं है।

मेरी प्रार्थना है कि सूरतके कार्यकर्त्ता स्वयं जागें और सूरतको जगायें। सूरतके निस्तेज हो जानेका विचारतक असह्य है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २९-६-१९२४

१६८. खुदाका गुनाह या कुदरतका?

एक भाई अपने पत्रमें[२] इस प्रकार लिखते हैं:

ये भाई कुदरत शब्दका जो अर्थ करते हैं यदि हम इस शब्दका यही अर्थ करें तो मेरा मौलाना मुहम्मद अलीसे हुई बातचीतके उक्त प्रसंगमें "खुदा" शब्दको रखना ही उचित था। यदि कोई मोटर-दुर्घटना हो जाये तो सभी लोग अपनी हाजतको भी रोककर घायलोंकी मददके लिए दौड़ पड़ेंगे। उसमें मेरे-जैसे क्षुद्र "महात्मा" की जरूरत नहीं पड़ेगी। मैं यह भी मानता हूँ कि उस समय हाजतको रोककर भाग पड़नेका परिणाम बुरा नहीं होगा, क्योंकि दयाभावके प्रभावसे शरीरमें जो परिवर्तन होता है वह हाजतको रोकनेके दुष्परिणामोंका शमन कर देता है। इसके अतिरिक्त कुदरतके कायदोंको जाननेवाला आदमी ऐसे समयमें उपवास करके हाजत रोकनेसे होनेवाले दुष्परिणामोंको दूर कर सकता है।

इसलिए इन भाईने "कुदरत" शब्दका प्रयोग जिस अर्थमें किया है उससे मेरे कथनका अभिप्राय प्रकट नहीं होता।

मैं अपने "महत्त्व" की खातिर भी अपने दोषोंको नहीं छिपा सकता। मैं अपने आपको अति प्राकृत मनुष्य मानता हूँ। यदि मुझमें कोई चमत्कार है तो वह सत्य और अहिंसाकी अनन्य सेवा करनेकी महती आकांक्षाका होना ही है। पत्रलेखकका यह कहना कि 'यदि मेरे-जैसा आदमी खुदाका ऐसा गुनाह कर सकता है जिससे कि उसे ऐसी भयंकर बीमारीका शिकार होना पड़े तब तो सामान्य मनुष्य खुदाके गुनाहसे बचे रहनेकी आशा ही नहीं कर सकता', उचित नहीं है। मैं स्वयं पामर हूँ, इस

 
  1. देखिए "सूरत जिला", १५-६-१९२४।
  2. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। पत्र प्रेषकने कहा था कि पूना अस्पतालमें मौलाना मुहम्मद अलीके इस प्रश्नके उत्तरमें कि "आप जैसे व्यक्तिको यह बीमारी कैसी?" आपने कहा था, "मैंने खुदाका कोई गुनाह किया होगा"---आपको खुदाकी जगह कुदरत कहना था।