पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/३६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३५
टिप्पणियाँ

चाहिए और अपने निश्चयपर दृढ़तापूर्वक डटा रहना चाहिए। हमें जाति-बिरादरीके लोगोंको खुश रखनेके लिए भी अधर्मका आचरण नहीं करना चाहिए। मृत्यु-भोज देनेमें किसीको पुण्य-लाभ होनेकी कोई सम्भावना नहीं है। मृत्युके बाद दान देनेकी प्रथा सभी जगह प्रचलित जान पड़ती है---दानके इरादेसे नहीं प्रत्युत इस खयालसे कि कोई हमें कंजूस या बिरादरीके मतकी उपेक्षा करनेवाला न मान बैठे। इस प्रकारके भोजमें जितना रुपया लगनेकी सम्भावना हो उतना रुपया जातिके बालक-बालिकाओंकी शिक्षा-दीक्षाके निमित्त दे दें तो यह उद्देश्य पूरा हो जाता है। हम मिथ्याभिमानसे अथवा भयवश जो पैसा विवाह अथवा मृत्यु-जैसे प्रसंगोंपर खर्च करते हैं यदि उतना पूराका-पूरा अथवा उसमें से अधिकांश बचाना सीख जायें तो हमारे सामने पैसेकी जो दिक्कत सदा बनी रहती है वह न रहे। लेकिन भगवान जाने यह कैसी माया है कि ऐसे समयमें ज्ञानी मनुष्य भी ज्ञान खोकर, मूढ़ बनकर कर्ज लेता और कारज करता है। लेकिन हम सभी खादी के इस सादगीके युगमें इन खर्चोसे बच सकते हैं।

अनुकरणीय

कराड़में[१] हिन्दू और मुसलमानोंके बीच कटुता उत्पन्न हो गई थी। कुछ मुसलमानोंने हिन्दू-मूर्तियाँ तोड़ दी थीं और इस विषयमें कुछ मुसलमान गिरफ्तार किये गये थे और उनपर अदालतमें मुकदमा शुरू कर दिया गया था। अब कांग्रेस कमेटीके मन्त्रीने तार द्वारा सूचित किया है कि कराड़में हिन्दू-मुसलमानोंकी सार्वजनिक सभा हुई। सार्वजनिक सभा में मुसलमानोंने क्षमा मांगी और पछतावा भी जाहिर किया। उन्होंने मूर्तियाँ तोड़नेवालों का पता लगानेकी जिम्मेदारी भी स्वीकार की और यह भी कबूल किया कि वे इस बातकी जमानत लेंगे कि आगे कभी मूर्तियाँ नहीं तोड़ी जायेंगी। हिन्दू-मुसलमान दोनों मिलकर भविष्यमें आपसी व्यवहारके लिए नियम बनायेंगे और मूर्ति तोड़नेसे जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई मुसलमान कर देंगे।

समझौतेके बाद उन्होंने कलक्टरको मुकदमा वापस लेनेकी अरजी दी। उपर्युक्त समझौता हो गया, इसकी जाँचकर लेनेके बाद कलक्टरने मुकदमा वापस लेनेकी स्वीकृति दी। लगता है, समझौता सच्चे मनसे किया गया है। दिल्लीमें पंचोंके चुनाव की प्रथा शुरू हो गई है और कराड़ने उसका प्रशंसनीय अनुकरण किया है। हम आशा करते हैं कि जहाँ-जहाँ हिन्दू-मुसलमानोंके बीच कटुता है, वहाँ दोनों परस्पर मिलकर समझौता कर लेंगे; और इसीमें दोनोंका हित है, ऐसा मानकर वे मिलकर रहेंगे और एक-दूसरेकी मदद करेंगे। यदि दोनों कौमें बात समझ लें और सच्चे दिलसे मिल जायें तो फिर आगे चलकर गलतफहमी पैदा नहीं होगी। बुरहानपुरमें[२] कराड़-जैसा ही प्रसंग उत्पन्न हो गया है, ऐसा सुननेमें आया है। क्या वहाँके हिन्दू-मुसलमान भी परस्पर मिलकर समझौता नहीं कर लेंगे।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २९-६-१९२४
 
  1. महाराष्ट्रका एक नगर।
  2. महाराष्ट्रका एक नगर।