पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/३६६

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१७०. सुन्दर सुधार

एक भाई लिखते हैं, "प्रेमका अभाव या अतिरेक" लेखमें[१] आपने 'तू' शब्दके प्रयोगको बहुत अच्छी तरह समझाया है। लेकिन उसमें एक वाक्य ऐसा है जिससे फिर वही "आप" का सम्बन्ध ध्वनित होता है। आपने लिखा है, "राम मेरा है और मैं उसका गुलाम हूँ।" इसके बजाय यदि आप यह लिखते, "राम मेरा है और मैं रामका हूँ", तो इससे "तू" की व्याख्या निखर उठती। उनका यह कहना बिलकुल सच्चा जान पड़ता है। "मैं उसका गुलाम हूँ", यह अलगावका सूचक है और "मैं रामका हूँ" यह तन्मयताका। लेकिन यदि यह भाव मनमें न हो तो भाषामें कहाँसे आये? अभी सम्भवतः मुझे गुलामी ही अधिक प्रिय है। शायद, अभी मुझे अलगाव भाता है। तभी मुझे गुलाम होनेकी बात याद आई। अब्बाई माई होना सहल नहीं है, यह विचार प्रतिक्षण मनमें उठा करता है। यदि हम भाषाका प्रयोग अपने अन्तरके विचारोंको व्यक्त करनेके लिए ही करें तो जो ध्वनि मनमें होगी वही निकलेगी। मुझे अभी भगवानका साक्षात्कार नहीं हुआ है, तब मैं उस साक्षात्कारकी भाषा कहाँसे लाऊँ? लेकिन मैं प्रयत्न तो अवश्य करूँगा। पाठकगण भी करें।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २९-६-१९२४

१७१. प्रस्ताव: अ० भा० कां० कमेटीकी बैठकमें[२]

अहमदाबाद
२९ जून, १९२४

इसके बाद श्री गांधी बोले। उन्होंने स्वराज्यवादियोंसे कहा कि वे चरखेके कार्यक्रमपर अमल करें। उन्होंने यह आशा भी प्रकट की कि लोग इसपर सद्भावसे अमल करेंगे। इसके बाद श्री गांधीने अपना दूसरा प्रस्ताव पेश किया:

प्रस्ताव २: चूँकि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके सामने यह बात लाई गई है कि यथोचित अधिकार प्राप्त अधिकारियों तथा संगठनों द्वारा समय-समयपर जारी की गई हिदायतों का कभी-कभी उचित पालन नहीं किया गया है, इसलिए यह निश्चित किया जाता है कि प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीकी कार्यकारी समितियोंको इसके

 
  1. देखिए पृष्ठ २०१-०२।
  2. २१ जूनकी रातको आश्रममें मोतीलाल नेहरू, चित्तरंजन दास तथा अबुल कलाम आजादके साथ बातचीत करनेके बाद गांधीजीने यह दूसरा प्रस्ताव पेश किया था। इसमें किये गये संशोधन उन्हींके थे। इस प्रस्ताव तथा अन्य प्रस्तावोंके मसविदोंके लिए देखिए "अग्नि-परीक्षा", १९-६-१९२४।