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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कांग्रेस कमेटी ऐसे लोगोंसे जो इस कांग्रेसके निर्वाचित संगठनोंके सदस्य हैं, प्रार्थना करती है कि वे अपने पदोंसे त्यागपत्र दे दें।[१]

श्री गांधीने इसके बाद संक्षेपमें उत्तर दिया।[२] उन्होंने कहा, मेरे प्रति आपकी निष्ठा एक बात है और प्रस्तुत प्रश्नोंपर विचार करना दूसरी। एकका दूसरीपर असर पड़ने देना ठीक नहीं है। यदि मैं कल मर जाऊँ तो आप क्या करेंगे? यदि मैं अचानक दुर्घटनाग्रस्त हो जाऊँ तो आप क्या करेंगे? मेरे चारों ओर सब-कुछ केन्द्रित करनेकी प्रवृत्ति निन्दनीय है। यदि समिति समझती है कि इस मार्गका अनुसरण करना ही ठीक है तो मैं उससे अनुरोध करता हूँ कि वह मेरे प्रस्तावको पास कर दे, अन्यथा उसे अस्वीकार कर दे; और यदि वह श्री वरदाचारीके संशोधनों को हितकर समझती है तो उन्हें स्वीकार कर ले।

संशोधन गिर गये और मूल प्रस्ताव बहुत बड़े बहुमतसे पास हो गया।[३]
इसके (९ बजेके) बाद श्री गांधीने निम्नलिखित प्रस्ताव पेश किया।[४]

श्री गांधीने एक संशोधनमें उत्तर देनेसे इनकार करते हुए कहा कि यदि संघर्ष की इस स्थितिमें भी देश अपने उद्देश्यको नहीं पा रहा है तो फिर मेरा कुछ भी कहना व्यर्थ है।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, ३०-६-१९२४
 
  1. गांधीजीने इस प्रस्तावपर कोई भाषण नहीं दिया। समर्थन वल्लभभाई पटेलने किया था। प्रस्तावका मूल रूप जो कार्यकारिणी समिति द्वारा स्वीकार किया गया था, इस प्रकार है: "अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके विचारमें यह वांछनीय है कि कांग्रेसी मतदाता विभिन्न कांग्रेस संगठनोंमें वकालत करनेवाले वकीलोंको, मिलके कपड़े पहननेवालों तथा उनका व्यापार करनेवाले लोगोंको, अपने छोटे बच्चोंको सरकार द्वारा नियन्त्रित स्कूलोंमें भेजनेवाले माता-पिताओंको, सरकारी पदवियाँ धारण करनेवाले सज्जनोंको और विधान मण्डलोंके सदस्योंको निर्वाचित न करें और इसीलिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ऐसे लोगोंसे जो अभी विभिन्न कांग्रेस निर्वाचित संगठनोंके सदस्य हों, प्रार्थना करती है कि वे अपने पदोंसे त्यागपत्र दे दें।
  2. पेश किये गये कुछ संशोधनोंके सम्बन्धमें।
  3. इसके बाद समिति ९ बजे शामतकके लिए उठ गई। उसे शामको गोपीनाथ साहासे सम्बन्धित प्रस्तावपर विचार करना था।
  4. यहाँ नहीं दिया गया है। चौथा प्रस्ताव बिना किसी परिवर्तनके पास कर दिया गया था, देखिए "अग्नि परीक्षा", १९-६-१९२४।