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१७२. भाषण: अ० भा० कां० कमेटीकी अनौपचारिक बैठकमें[१]

३० जून, १९२४

गोपीनाथ साहाके सम्बन्धमें प्रस्ताव पारित होनेके पश्चात् मैंने जो-कुछ देखा उससे मुझे कुछ हँसी आई और दुःख भी हुआ। मैंने मनमें सोचा कि मैं आप लोगोंसे क्या कहूँ। बादमें मैं आपसे 'यंग इंडिया' के द्वारा ही कुछ कहूँगा। मुझे इससे बहुत दुःख हुआ, उसका क्या कारण था? कारण यह था कि यहाँ जितने भी लोग इकट्ठा हुए हैं वे सब स्वराज्य प्राप्त करनेकी प्रतिज्ञा कर चुके हैं और अहिंसामय असहयोगके उपायको ही काममें लानेकी बात कबूल कर चुके हैं। तथापि हमने केवल हिसाकी ही बात की। मेरी समझमें नहीं आता कि हम अ० भा० कां० कमेटीकी बैठकमें हिंसाकी बात कर ही कैसे सकते हैं? कांग्रेसका जो ध्येय और संकल्प है यदि वही ध्येय और संकल्प हमारा भी है तो ऐसी बात हमारी जुबानपर आ ही नहीं सकती। अन्तिम प्रस्तावपर[२] मेरी जीत केवल आठ मतोंसे हुई थी, जीत जैसी वस्तु मैंने संसारमें जानी ही नहीं...[३]डा० परांजपेने कोई नई बात नहीं की है; बल्कि उन्होंने तो मेरे सिद्धान्तको सरल रूपमें आपके सम्मुख प्रस्तुत ही किया है। मैंने 'शठं प्रत्यपि सत्यं' ऐसा कहा है। मैंने तो कहा है कि जो शत्रु अपनी बहनोंकी लाज लूटे और आपको आहत करे, आप उसके भी पाँव चूमें। मैं तो संसारका राज्य मिलनेपर भी अपनी बातको नहीं छोडूँगा, लेकिन हिंसाका मार्ग भी एक मार्ग है, इस बातको मैं स्वीकार करता हूँ। इसीलिए मैंने दिल्लीमें कहा था कि हमें वही बात मुँहसे निकालनी चाहिए जो हमारे अन्तरमें है। लेकिन हमने तो आज ढोंग किया है। यदि आपको तलवार चलानी हो तो चलायें, लेकिन यदि आप सचाईसे तलवार चलायेंगे तो मैं हिमालयमें चला जाऊँगा और आपको वहाँसे बधाई भेजूँगा। लेकिन मैं ढोंगसे घबराता हूँ। मुझे गोपीनाथ सम्बन्धी प्रस्तावपर बोलनेकी जरूरत ही क्यों पड़े? अन्य प्रस्तावोंके बारेमें अवश्य बोलूँगा, तर्क करूँगा और समझाऊँगा भी; लेकिन जो सिद्धान्त कांग्रेसकी आधार शिला है उसपर भी यदि मुझे आज भाषण देना पड़े तब तो हमें यह संघर्ष छोड़ देना चाहिए।

और हिंसाका यह कार्य करनेके बाद हमें इतराना[४] सूझा। गंगाधररावने मुझसे पूछा कि अब क्या किया जाना चाहिए। मैंने उनसे कहा कि वे तुरन्त त्यागपत्र दे दें।

 
  1. औपचारिक बैठकके बाद
  2. गांधीजीका चौथा प्रस्ताव जिसमें गोपीनाथ साहा द्वारा की गई अर्नेस्ट डेकी हत्याकी निन्दा की गई थी।
  3. साधन-सूत्रमें ऐसा ही है।
  4. यह संकेत सम्भवतः गांधीजीके प्रस्ताव संख्या ४ पर अ० भा० कां० कमेटीके सदस्यों द्वारा दिये गये भाषणोंकी ओर है।