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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं तो उनसे अपनी सारी माल-मिल्कियतको जला डालनेको कहना चाहूँगा। आसफअली आये, उन्होंने भी यही बात कही। उन्होंने पूछा, "वकीलोंने ही क्या बिगाड़ा है?" मैंने अपना प्रस्ताव[१] इन परिस्थितियोंमें तैयार किया। इस प्रस्तावके सम्बन्धमें आपने जो रुख अख्तियार किया मैंने वह भी देखा। आपने इसका विरोध किया, यह बात तो मुझे ठीक लगी, क्योंकि इसे पेश करना मेरे लिए बदनामीकी बात थी। यह तो विषका प्याला पीनेके समान था। लेकिन मैंने उसे पी लिया, क्योंकि मैंने ३० वर्षोंसे जिस जनताको समझनेका ही धन्धा किया है, मैंने उसका रुख जान लिया है। मैंने हम सभीकी शक्ति देखी और मुझे लगा कि ऐसे प्रस्तावकी रचना किये बिना काम नहीं चल सकता। लेकिन मेरे विरुद्ध नियमकी बारीकीका प्रश्न (लॉ-पॉइंट) उठाया गया, इससे मैं चौंका; मैंने अपने मनमें कहा: अरे मूर्ख! तू ईश्वर की अर्चना कर रहा है या शैतानकी? तू किस फेरमें पड़ गया है।[२]

मैं तो निश्छल लोगोंसे ही काम लेना चाहता हूँ। आप सभी टेढे निकले। कांग्रेस क्या चीज़ है? इसे आप जैसा बनायेंगे, वैसी ही यह बनेगी। आप इसे एक सच्ची संस्था बनाना चाहते हैं तो आप कांग्रेससे निकल जायें, और गाँवोंमें जाकर काम करें। आप मुझसे एक गधेके जितना काम ले सकते हैं लेकिन सीधे ढंगसे, टेढ़े ढंगसे नहीं। आप मुझे फुसला और बहका अवश्य सकते हैं; लेकिन जब मुझे यह मालूम हो जायेगा कि आप मुझे ठग रहे हैं तब मैं भगवानका सहारा लूँगा और आपके पास खड़ा नहीं रहूँगा।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ६-७-१९२४

१७३. भेंट: एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाके प्रतिनिधिसे[३]

अहमदाबाद
१ जुलाई, १९२४

अधिवेशन सम्बन्धी जो विचार मेरे मनमें हैं उन्हें इस समय व्यक्त करना बहुत कठिन है। यह इसलिए नहीं कि मेरे पास कहनेको कुछ नहीं है, बल्कि इसलिए कि कहना बहुत कुछ है। जिस प्रकार अत्यधिक खानेवाला मनुष्य अपना कोई हित

 
  1. गांधीजीका प्रस्ताव संख्या ५ जो अ० भा० कां० कमेटीने स्वीकार नहीं किया था। प्रस्तावका उद्देश्य, अ० भा० कां० कमेटी द्वारा पारित गांधीजीके प्रस्ताव संख्या ३ के प्रभावसे मुकदमोंमें फँसे लोगोंकी रक्षा करना था, इसमें उन सदस्योंको त्यागपत्र देनेका सुझाव दिया गया था जो अदालतोंके बहिष्कार समेत पांच प्रकारके बहिष्कारोंमें विश्वास नहीं करते और उनपर अमल नहीं करते।
  2. इसपर गांधीजी कुछ देरतक बोल नहीं सके और उनकी आँखोंसे आँसू बह चले। उन्होंने तुरन्त ही अपनेको संयत कर लिया और फिर बोलने लगे।
  3. गांधीजीसे उसी समय समाप्त होनेवाले अ० भा० कांग्रेस कमेटीके अधिवेशनके बारेमें अपने विचार व्यक्त करनेकी प्रार्थना की गई थी।