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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उस प्रस्तावको स्थगित करनेकी दरख्वास्त करता, परन्तु मैंने सभासे यह वादा किया था कि दीवानीके मामले मुकदमे करनेवाले लोगोंको तीसरे प्रस्तावके असरसे बचाने के लिए मैं कोई इलाज ढूँढ़ निकालूँगा या ऐसा न होनेपर कोई अन्य प्रस्ताव पेश करूँगा । इस तीसरे प्रस्तावके अनुसार उन लोगोंको इस्तीफा पेश करना लाजिमी है जो अदालतोंके बहिष्कार सहित पाँचों बहिष्कारोंके सिद्धान्तको न मानते हों और जो खुद उसका अमल न कर सकते हों। यह बचावकी सूरत उन लोगोंके लिए की गई थी जिन्हें सम्भव है कि मुद्दई या मुद्दालेह बनकर अदालतोंमें जानेपर मजबूर होना पड़े। इस विषयपर जो प्रस्ताव पहले कार्यसमितिमें स्वीकृत होकर सदस्योंमें बाँटा गया था उसमें उनके बचावकी सूरत थी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने उसके स्थानपर ऐसा एक प्रस्ताव दरअसल स्वीकृत कर दिया था। पाठक इस बातको जानते ही हैं कि इससे वे लोग मुक्त हैं जो कोकोनाडा प्रस्तावसे प्रभावित होते हों। इस संशोधनका मसविदा बनाते समय मैंने दीवानी दावा करनेवालोंके बचावकी सूरत नहीं रखी थी। मैंने एक अलहदा प्रस्तावके द्वारा ऐसा करनेकी बात सोच रखी थी और प्रस्ताव-को पेश करते समय ही यह बात प्रकट कर दी थी और इसी प्रतिश्रुत प्रस्तावने मेरे लिए 'घोर अन्धकार' से निकलनेका रास्ता खोल दिया। मैंने इस प्रस्तावनाके साथ उसे पेश किया कि यह मेरे सुबह दिये गये वचनके अनुसार पेश किया जा रहा है। मैंने यह भी कहा कि श्री गंगाधरराव देशपाण्डे इसकी मिसाल हैं। मैं नियममें अपवाद रखने या उनका यथाशक्ति पालन करनेकी छूट देने आदिमें विश्वास नहीं रखता । पर मैं जानता हूँ कि कुछ कट्टर असहयोगियोंको भी अदालतोंसे बचना कठिन होता रहा है। ऐसे कर्जदार लोग, जिन्हें धर्माधर्मकी परवाह नहीं रहती, असहयोगियोंको कर्ज अदा करनेसे इनकार कर देते हैं; क्योंकि वे जानते हैं कि ये नालिश तो करेंगे नहीं। इसी तरह, मैं ऐसे लोगोंको भी जानता हूँ जिन्होंने असहयोगियोंपर दावे दायर किये हैं -- यह सोचकर कि ये अदालतमें जाकर सफाई तो देंगे नहीं। इसपर भी किसीको उत्सुकता हो और वे तलाश करें तो उन्हें यह जानकर ताज्जुब और खुशी होगी कि सैकड़ों मामलोंमें छोटे-बड़े असहयोगियोंने अदालतों में जाकर दावोंकी सफाई नहीं दी या नालियों नहीं कीं और हानि सहना क़बूल किया । फिर भी, यह बात बिलकुल सच है कि प्रतिनिधिगण सदा निषेधके नियमपर कायम न रह पाये, इसलिए दावा दायर करनेकी ओर आँखें मूँदनेका रिवाज-सा पड़ गया और सफाई देनेकी ओर तो और भी ज्यादा । इस समितिने भी समय-समयपर ऐसे नियम बनाये हैं जिससे यह रवैया कुछ हदतक वैध भी हो जाता है। मैंने सोचा कि अब जबकि इन बहिष्कारोंके पालनके बारेमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी सख्ती से काम लेना चाहती है, मुकदमेबाजोंकी स्थितिको साफ कर दिया जाना चाहिए। मुझे इससे बढ़कर खुशी और किसी बातसे नहीं हो सकती कि कांग्रेस अपने पदोंपर सिर्फ उन्हीं लोगोंको रखे जो खुद पाँचों बहिष्कारोंपर पूरा-पूरा अमल करते हों परन्तु आजकी हालत में अदालतोंके बहिष्कारका यथावत् पालन बहुतोंके लिए प्रायः असम्भव हो गया है । इसके लिए स्वेच्छापूर्वक गरीबीका व्रत धारण करना परम आवश्यक है। कांग्रेस संगठनों में