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पराजित और नतमस्तक

हुआ कि अपनी ही बनाई तराजूके पलड़ेपर चढ़कर अर्थात् कांग्रेस द्वारा तय किये हुए सिद्धान्तकी कसौटीपर हम लोग हलके बैठे। हम देशके कितने अयोग्य प्रतिनिधि निकले। मुझे लगा कि वहाँ मेरी उपस्थितिका कोई औचित्य ही नहीं था । जिन्हें मेरा सन्देश स्वीकार करनेकी कुछ पड़ी नहीं थी उनका नेतृत्व करनेकी अपनी योग्यताके विषयमें मुझे सन्देह हुआ और उसीका मुझे दुःख हुआ ।

मैंने देखा कि मेरी पूरी पराजय हुई है। मेरा गर्व चूर-चूर हो गया। मेरा सिर झुक गया। किन्तु पराजय मुझे हताश नहीं कर सकती। वह सिर्फ मुझे संयत ही बना सकती है। अपने सिद्धान्तपर तो मेरी श्रद्धा अटल है। मुझे विश्वास है कि ईश्वर मुझे रास्ता दिखायेगा | सत्य मनुष्य के बुद्धिबलसे ऊपर है ।

मो० क० गांधी

ऊपर लिखा मजमून ३० जून सोमवारको लिखा गया था। मैंने उसे लिखा तो; पर मुझे न तो उस समय सन्तोष हुआ था, न अब ही है। उसे पढ़नेपर मुझे ऐसा मालूम हुआ कि मुझसे न तो कमेटीके प्रति न्याय हुआ है और न अपने प्रति । कमेटीकी बैठक पूरी हो जाने के बाद जिस अनौपचारिक बैठकमें मैंने पूर्वोक्त हृदयकी बात कही थी वह महत्वपूर्ण थी, परन्तु उसके पहले हुई कमेटी की बैठक भी जिसके कामकाजसे मुझे मार्मिक आघात पहुँचा था, कुछ कम महत्त्वपूर्ण नहीं थी। पता नहीं, मैं इस बातको स्पष्ट कर सका या नहीं कि किसी वक्ता के मनमें कोई दुर्भाव नहीं था। मेरा मन जिस बातसे दुःखी हो रहा था वह तो था लोगोंका अनजाने में गैर-जिम्मेदाराना आचरण और कांग्रेसके ध्येय और अहिंसा-नीतिकी अवहेलना ।

उस अनौपचारिक बैठकमें हमने अपने हृदय टटोलकर देखे । उससे वातावरण स्वच्छ हो गया। मंगलवारके सारे दिन-भर मैं अपने साथी कार्यकर्त्ताओंसे अपनी स्थितिके बारे में विचार-विमर्श करता रहा। मेरी आन्तरिक अभिलाषा थी और अब भी है कि मैं कांग्रेससे अलग हो जाऊँ और सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम एकता, खादी और अस्पृश्यताका काम करता रहूँ, पर उन्होंने इसे न माना। उन्होंने कहा -- देशके इतिहासके ऐसे संकट के अवसरपर आपको हट जानेका कोई अख्तियार नहीं है। आपके अलहदा हो जाने से समस्याएँ हल नहीं हो जायेंगी। इससे अवसाद उत्पन्न होगा और कांग्रेसकी बैठकें सजीव अंकुश रखनेवाली एक शक्तिसे वंचित हो जायेंगी। यह आपका बनाया हुआ कार्यक्रम है और आपको ही उसके लिए सरगर्मी के साथ तबतक काम करना चाहिए जबतक बहुमत कार्यक्रमके पक्षमें है। अ० भा० कां० कमेटीमें प्राप्त मतोंकी संख्या से बहुत ज्यादा मत इस कार्यक्रमके पक्षमें है। आपको देशमें घूमना चाहिए और स्वयं देखना चाहिए कि हकीकत क्या है ? मेरा दूसरा प्रस्ताव यह था कि वे सब लोग जो कांग्रेसके सिद्धान्तको पूरा-पूरा मानते हों, कांग्रेससे हट जायें और सारा काम- काज स्वराज्यवादियोंको सौंप दें। आगे चलकर जब इसके विपक्षमें दलीलें पेश होने लगीं तब मैंने खुद ही इसे अविचारपूर्ण समझकर छोड़ दिया । स्वराज्यवादी यही तो नहीं चाहते थे। उनके लिए यह असम्भव है और उनसे किसी असम्भव बातको करनेकी अपेक्षा रखना उनके साथ ज्यादती करना होगा। मैं जानता हूँ कि वे तो