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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिखाई देता । मैं इसे आत्म-वंचना के सिवा और कुछ नहीं कह सकता। जिन लोगोंने उनका समर्थन किया, उन्होंने साफ-साफ लफ्जों में अपना आशय कह दिया था । उनके दर्शन में राजनीतिक हत्या के लिए स्थान है; और क्या आखिर सर्व-साधारण लोग भी ऐसा ही नहीं मानते ? सभ्य कहलानेवाली अधिकांश कौमें इसकी कायल हैं और जब कभी अवसर आता है वे इसीके अनुसार चलती हैं। असंगठित और उत्पीड़ित लोगों के पास राजनीतिक हत्याओंके सिवा दूसरा चारा नहीं है । यह एक मिथ्या सिद्धान्त है । इसके कारण संसार कुछ अधिक सुख-चैनका स्थान नहीं बन पाया है। यह बिल्कुल सच बात है । मैं तो सिर्फ इतना ही कह सकता हूँ कि यदि श्री दास और उनके समर्थकोंने भूल की है तो अधिकांश 'सभ्य' लोकमत उनके पक्षमें है । भारतके विदेशी प्रभुओंकी करतूतें इससे अच्छी नहीं रही हैं । यदि कांग्रेस ऐसी एक राजनीतिक संस्था होती जिसके साधन सीमित न होते तो श्री दासके संशोधनपर गुण-दोषकी दृष्टिसे ऐतराज करना असम्भव होता । उस दशामें केवल उपयोगिताका प्रश्न बच रहता ।

लेकिन यह बात कि कांग्रेसके ७० प्रतिनिधि श्री दासके प्रस्तावका समर्थन करने-वाले निकले, एक दिल दहला देनेवाली बात है । वे अपने ध्येयके प्रति झूठे साबित हुए। मेरी राय में यह संशोधन कांग्रेसके ध्येय या अहिंसा-नीतिको भंग करता था । परन्तु मैंने जान-बूझकर इस आशयका ऐतराज नहीं उठाया। यदि सदस्यगण ऐसे प्रस्तावको चाहते थे तो उसका समर्थन करना उनके लिए ठीक ही था। मेरी रायमें यह हमेशा बेहतर होता है कि संविधान सम्बन्धी सवालोंका निपटारा आम तौरपर सदस्य ही कर लिया करें ।

दूसरे प्रस्तावोंकी चर्चा करने की जरूरत नहीं मालूम होती ।

सिखोंके त्याग और वीरताकी प्रशंसाका प्रस्ताव कांग्रेसकी स्वीकृत नीतिके अनुकूल ही था ।

अफीमवाला प्रस्ताव दो कारणोंसे आवश्यक हो गया था । कुमारी लामोट संसारमें अफीमके प्रसारको रोकने और केवल दवादारूके ही लिए उसका उपयोग करनेकी छूट रखने के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण काम कर रही हैं। उन्होंने बड़े ही व्यथापूर्ण शब्दोंमें भारत सरकारकी अनीतिमूलक अफीम नीतिका दिग्दर्शन कराया है। श्री एन्ड्रयूज यह बात दिखा चुके हैं कि किस तरह खुद भारत सरकारने अफीम-परिषद्-में लोगोंकी जरूरत के सिलसिले में "औषधीय" के स्थानपर "विधि सम्मत" शब्द दाखिल कराया है। ऐसी हालत में जेनेवाकी आगामी परिषद्पर दृष्टि रखते हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह भारत सरकारकी इस नीति के बारेमें देशके विचार व्यक्त कर दे । और अफीमके दुर्व्यसनके कारण असम के लोगोंकी हालतकी जाँच करना भी उतना ही आवश्यक हो गया है । अफीमके इस घातक दुर्व्यसनके कारण काफी संख्यामें वहाँके अच्छे-भले स्त्री-पुरुषोंकी शक्तिका ह्रास हो रहा है । असम प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी इसकी तहकीकात के लिए तैयार है । इसलिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने श्री एन्ड्रयूजको इस बात के लिए नियुक्त करना ठीक समझा कि वे प्रान्तीय कमेटी के सहयोगसे इसकी तहकीकात करें।