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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्षमा-याचना

मैं बड़ी प्रसन्नता के साथ नीचे दिया हुआ पत्र[१] छाप रहा हूँ। बाराबंकीपर लिखी अपनी टिप्पणीमें मैंने जानकारी देनेवालेका नाम नहीं दिया था, लेकिन अब मैं नामको और अधिक नहीं छिपा सकता। मैं चाहता हूँ कि श्री शुएबकी तरह सब अपनी भूल स्वीकार करनेको तैयार रहें और हिन्दुओं तथा मुसलमानोंकी बुरी करतूतोंकी अफवाहोंपर विश्वास करनेमें जल्दी न करें । मेरी ही तरह पाठकोंको भी यह जानकर प्रसन्नता होगी कि बाराबंकी-नगरपालिकाके हिन्दू-सदस्योंपर जो आरोप लगाया गया था,वह झूठा था। उनके साथ अन्याय करनेमें अनजाने ही मैं भी एक साधन बन गया,इसके लिए मैं उनसे माफी माँगता हूँ :

सेवामें
सम्पादक, 'यंग इंडिया'
महोदय,

बाराबंकीकी हालत के बारेमें मैंने आपको लिखा था। लेकिन उसके बाद बाराबंकीकी जिला कांग्रेस कमेटीके एक मुसलमान सदस्यने, जो प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीके भी सदस्य हैं, मुझे खबर दी कि जो खबरें मुझे दी गई थीं, वे सच न थीं। जो कुछ हुआ वह यह था : बाराबंकीके म्युनिसिपल बोर्डके पुराने कानून के अनुसार अर्जियाँ उर्दू लिपिमें ही दी जाती थीं । बोर्डने अब यह कानून बनाया है कि अर्जियाँ देवनागरी और उर्दू दोनोंमें से किसी भी एक लिपिमें लिखी जा सकती हैं। यह कानून स्वयं मेरी रायमें तो ठीक और न्यायानुकूल ही है। मुझे बड़ा अफसोस है कि मैंने आपको वे खबरें पहुँचाई, जो गलत साबित हुई। उस गलत खबरको भेजनेका में सिर्फ एक ही कारण दे सकता हूँ कि जिन्होंने मुझे यह खबर दी, वे बड़े विश्वसनीय लोग हैं । . . .मैं यहाँ यह बता देता हूँ कि स्वयं उन्हें भी उस बातके सच होनेका पूरा विश्वास था । गलती तो मेरी ही है । . . .भविष्यके लिए मैंने एक सबक सीखा ।

आपका,
शुएब कुरैशी

सद्भावपूर्ण सम्बन्ध

आजकल हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच झगड़ों और तनावोंकी ही खबरें बराबर मिलती रहती हैं। ऐसी स्थितिमें तिरुपति निवासी श्री के० राजगोपालाचारीने जो कुछ लिख भेजा है, वह तसवीरका एक खुशगवार पहलू सामने रखता है । वे लिखते हैं :[२]

  1. १. अंशत: उद्धृत ।
  2. २. अंशत: उद्धृत ।