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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आँखें मिलाते हुए लज्जाका अनुभव होता है । कुछ दिन बाद एक रोज हिन्दुओं और मुसलमानों, दोनोंने अपनी-अपनी दूकानें बन्द रखीं। इसमें हिन्दुओंका उद्देश्य रमजान के अवसरपर मुसलमानोंके साथ सहानुभूति दिखाना था। दूसरी बार गुड़ी पड़वापर हिन्दुओं को प्रसन्न करनेके लिए हिन्दुओंके साथ-साथ मुसलमानोंने भी अपनी दूकानें बन्द रखीं। दोनों सम्प्रदायोंके बीच अब भी सद्भावना बनी हुई है और मुझे विश्वास है कि वह सदा बनी रहेगी। बहुत दिनोंसे इस शहर में एक ही मस्जिद थी, लेकिन अब दूसरी भी तैयार हो गई है। हिन्दू लोग नई मस्जिदके सामने भी आजतक गाते-बजाते नहीं हैं। मुसलमानोंकी तुलनामें यहाँ हिन्दू लोग इतने अधिक शक्तिशाली हैं कि यदि वे चाहें तो आसानीसे उनकी उपेक्षा करके मनचाही कर सकते हैं, लेकिन वे मुसलमानोंका बहुत ज्यादा खयाल रखकर चलते हैं और जहाँ जरूरी होता है, उनके सामने झुक भी जाते हैं ।

हाँ, तो अब हम यही आशा करें कि दोनों समुदायोंके बीच यह सद्भावनापूर्ण सम्बन्ध सदा बने रहेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ३-७-१९२४

१७९. पत्र : मोतीलाल नेहरूको

३ जुलाई, १९२४

प्रिय मोतीलालजी,

आज मैंने एक पत्र[१] पढ़ा है। मैं उससे बहुत क्षुब्ध हुआ हूँ। मैं सोच रहा हूँ कि इसके बारेमें कुछ लिखूं तो मित्रताके अधिकारका दुरुपयोग तो नहीं होगा ? मेरी अन्तरात्माकी आवाज कहती है कि मुझे इस प्रश्नका निर्णय स्वयं न करके इसे आपपर छोड़ देना चाहिए। यदि आप इसे दुरुपयोग समझें तो इस अपराधके लिए मुझे क्षमा कर दें और इस पत्रपर कोई विचार न करें।[२]

  1. १. यह पत्र उपलब्ध नहीं है। इसमें स्पष्टरूपसे यह कहा गया था कि मोतीलाल नेहरूने शिमला में एक सान्ध्य भोजमें मद्यपान किया। इस भोजमें वे मुख्य अतिथि थे । देखिए मुकुन्दराव जयकरकी द स्टोरी ऑफ माई लाइफ, खण्ड २ ।
  2. २. मोतीलाल नेहरूने १० जुलाईको इसका लम्बा उत्तर देते हुए लिखा था : “मैं प्रारम्भमें ही आपको यह विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि आपके उक्त पत्रको मैं मित्रताके अधिकारका दुरुपयोग नहीं समझता; बल्कि यह जानना आपका अधिकार और कर्त्तव्य समझता हूँ कि आपके द्वारा अपने प्रति सार्वजनिक रूपसे अविश्वास प्रकट किये जानेपर भी जो आपके साथ और आपके अधीन काम करनेका यथाशक्ति प्रयास कर रहे हैं, उनका आपके प्रति क्या भाव है ।"