पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/३८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५९
पत्र : मोतीलाल नेहरूको

लेखकने पत्रके साथ (लीडरकी) एक कतरन भी नत्थी करके भेजी है।[१] इसे मैंने पहले नहीं पढ़ा था । उसका कहना है कि किसी अन्य सान्ध्य भोजमें आपने यह कहा बताते हैं: “पानी शुद्ध बताया गया है, किन्तु शराब भवकेसे तीन बार खींची जानेपर बनती है, इसलिए वह पानीसे भी अधिक शुद्ध है ।[२] कृपया मेरी बातका गलत अर्थ न लगाइयेगा। यदि आपने फिर शराब पीना शुरू कर दिया हो तो इस बारेमें मुझे कुछ नहीं कहना है । यदि यह समाचार विश्वस्त है तो मुझे इससे दुःख हुए बिना नहीं रह सकता । आपका मद्यपान-विरोधी आन्दोलन चलाते हुए खुलेआम शराब पीना बुरा है और शराबबन्दीका मजाक उड़ाना तो इससे भी बुरा है ।

मुझे विशेष कुछ नहीं कहना है। यह कहनेकी आवश्यकता नहीं कि मैं पत्रकी प्रतीक्षा बड़ी व्यग्रतासे करूँगा ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ पुनश्चः ]

मैं जानता हूँ कि यदि कोई आदमी अपने घर शराब पीता है तो वह खुले आम भी पी सकता है। फिर भी यदि खुले आम शराब पीनेसे लोगोंकी भावनाको ठेस लगनेकी सम्भावना हो तो एक लोकसेवकको खुले आम शराब नहीं पीनी चाहिए । मैं अपने घर शराब पीने और छिपकर शराब पीनेमें भेद करता[३] हूँ ।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
द स्टोरी ऑफ माई लाइफ, खण्ड २
  1. १. लीडरमें छपी इस खबर में जिसको जयकरने उद्धृत किया है, इस घटनापर व्यंगपूर्ण टिप्पणी की गई थी।
  2. २. इस सम्बन्धमें मोतीलालजीने लिखा था कि यह शराबसे सम्बन्धित एक फारसी शेरका अभिप्राय-भर था।
  3. ३. मोतीलालजीने इसका उत्तर यह दिया था : "मेरी दृष्टिमें यह बात स्पष्ट है कि झूठा दिखावा करके लोगोंको धोखा देनेसे उनकी भावनाको ठेस पहुँचाना अधिक अच्छा है। मैं यह बात समझने में बिलकुल असमर्थ हूँ कि यदि मुझे शराब पीनी हो तो अपने घरमें पीऊँ; आपके ऐसे सुझावका आपके स्वभावसे कैसे मेल बैठ सकता है ! आप घरमें शराब पीने और छुपकर शराब पीने में जो अन्तर करते हैं, मैं उससे भी सादर मतभेद प्रकट करूँगा ।"