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१८०. पत्र : प्रभाशंकर पट्टणीको

ज्येष्ठ बदी अमावस्या, गुरुवार [ ३ जुलाई, १९२४]

[१]

सुज भाईश्री,

आपका पत्र मिला । सरदार मंगलसिंह[२] यहाँ लगभग एक सप्ताह रहे। वे यहाँसे परसों चले गये । आपका पत्र मुझे उनके जानेके बाद मिला; नहीं तो वे वहाँ अवश्य पहुँच जाते ।

इस समय बातचीत टूटनेका मुख्य कारण स्वयं लॉर्ड रीडिंग[३] थे। करीब-करीब सब बातें तय हो गई थीं। मुझे अब भी आशा है कि आन्दोलनमें[४] खून-खराबी नहीं होगी । लेकिन भविष्यकी कौन कह सकता है ?[५]

लगता है कि दिनकरराव फिर कहीं चले गये हैं ।

मोहनदास के घनश्यामदास

मल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३१७९) से ।
सौजन्य : महेश पट्टणी

१८१. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

[ अहमदाबाद ]
[ ३ जुलाई, १९२४ के पश्चात् ]

[६]

भाईश्री ५ घनश्यामदास,

आपके दोनों पत्र मिले हैं। मैं जब दिल्ली जाऊंगा तो आपको तार भेजुंगा । श्री सरोजीनी नायडूकी प्रशंसामें मेरे ख्यालसे अतिशयोक्ति नहि है । मैं उनको आदर्श भारत महिला नहि मानता हूँ परन्तु द० आ० के कार्यके लीये वह आदर्श एलची थी।[७] इतना कहते हुए भी मैं कबुल कर लेना चाहता हूँ कि मैं लोगोंका

  1. १. १९२४ में ज्येष्ठमें अमावस्था दो दिन, १ और २ जुलाईको पड़ी थी। गुरुवारको ३ जुलाई थी।
  2. २. सिख अकाली आन्दोलनके एक नेता ।
  3. ३. भारतके तत्कालीन वाइसराय और गवर्नर जनरल ।
  4. ४. अकाली आन्दोलन ।
  5. ५. देखिए “भेंट : एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाके प्रतिनिधिसे”, १-७-१९२४ ।
  6. ६. सम्भवतः यह पत्र ३ जुलाई १९२४ को प्रकाशित गांधीजीके लेख 'बम्बई सरोजिनीको याद रखे'के बाद लिखा गया।
  7. ७. १९२४ के मध्य में वे पूर्वी आफ्रिकाके दौरेपर गई थीं।