गुणको देखता हूँ और दोषोंको भूलना चाहता हूँ। ऐसा करनेसे न मुझे कुछ हानि हुई है और न उन व्यक्तियोंको जिनकी मैंने प्रशंसा की हो ।
यदि मुझको मौलाना महमद अली जल्दी नहीं बुलायेंगे तो मैं सप्टेम्बरके पहले दिल्ली नहि पहोंचुँगा ।[१]
आपका,
मोहनदास गांधी
हरिद्वार
मूल पत्र ( सी० डब्ल्यू० ६०२८) से ।
सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला
१८२. पत्र : लाला लाजपतरायको
४ जुलाई, १९२४
मुझे हर्ष है कि आप आखिरकार वहाँ पहुँच गये हैं, जहाँ आपको होना चाहिए । आशा है कि पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्तितक आप वहाँसे नहीं हिलेंगे ।
आशा है, यहाँकी घटनाओंसे आप क्षुब्ध न होंगे। एक ही मंचपर स्वराज्य-वादियोंका तथा मेरा सहयोग सम्भव नहीं है। हाँ, सहयोग सम्भव हो सकता है --यदि दोनोंका पृथक-पृथक संगठन हो । कांग्रेसको एक समय में केवल एक ही संस्थाको अपनाना चाहिए, एक ही समय में सरकार तथा जनता दोनोंकी ओर कैसे ध्यान दिया जा सकता है ?
भवदीय शुभाकांक्षी,
गांधी