१८३. पत्र : वसुमती पण्डितको
[ साबरमती ]
आषाढ़ सुदी २ [४ जुलाई, १९२४]
तुम्हारा लिफाफा और पोस्टकार्ड एक साथ मिले ।
तुम वहाँ एक मास ज्यादा रही, सो अच्छा ही हुआ। जैसे-जैसे ईश्वरमें हमारा विश्वास बढ़ता जाता है और हमें अपनी लघुताका भान होता जाता है वैसे-वैसे हम निश्चिन्त होते जाते हैं । चिन्ता करनेसे क्या दुःख कम हो जाता है ?
बापूके आशीर्वाद
मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४४८ ) से ।
सौजन्य : वसुमती पण्डित
१८४. सन्देश : अपरिवर्तनवादियोंको
४ जुलाई, १९२४
मुझे अपरिवर्तनवादियोंसे केवल दो शब्द कहने हैं। हम काम करना चाहें तो हमें काम करनेसे कोई नहीं रोक सकता । हमारे सम्मुख सूत कातने और खादीको तैयार करने तथा वितरित करनेके अतिरिक्त दूसरा कोई क्रियात्मक कार्यक्रम नहीं है । इसलिए जवान और बूढ़े, स्त्री और पुरुष सभी इस कार्यमें संलग्न हो जायें । यदि हमारे पड़ोसी हमारी बात नहीं सुनते तो इससे हमें सूत कातनेके लिए और भी अधिक समय मिलेगा । इसलिए कोई भी सच्चा कार्यकर्त्ता यह शिकायत नहीं कर सकता कि उसके पास कोई काम नहीं है । मैं राष्ट्रीय स्कूलोंको खद्दर कार्यक्रममें सहायक समझता हूँ ।
मो० क० गांधी
अमृतबाजार पत्रिका,८-७-१९२४