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१८५. तार : जी० नलगोलाको

[ साबरमती
५ जुलाई, १९२४ या उसके पश्चात् ]

[१]

कालेज बन्द नहीं होना चाहिए ।

गांधी


अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ८९८८) की फोटो नकलसे ।

१८६. पत्र : गंगाबहन वैद्यको

आषाढ़ सुदी ५ [७ जुलाई, १९२४]

[२]

पू० गंगाबहन,

आपका पत्र मिला । भविष्यपर हमारा कोई वश नहीं है; भविष्य के बारेमें हम कुछ नहीं जानते। जब हम छोटीसे-छोटी बातमें भी निमित्त मात्र होते हैं तब दुःख किसलिए भानें ? जो घटित हो, उसे देखते रहें। जो अपना कर्त्तव्य जान पड़े, उसे पूरा करें और प्रसन्न रहें। इसमें समस्त धर्मं आ जाता है। आप जिसे दुःख मानती हैं, उसीको सुख क्यों नहीं समझतीं ? सहिष्णुता आपमें कष्ट-सहनसे आई है । सन्तोष में सुख है । सुख ढूँढ़नेवालेके पल्ले दुःख ही पड़ता है और दुःख सहन करते- करते सुख मिलता है। हम मजदूर जन्मे हैं । यदि चाकरी बजाते -- सेवा कार्य करते -- हुए हमारी आँखें मुंदें तो समझना चाहिए कि हमारा जीवन सफल हो गया ।

आप जब आश्रममें आयें तब मुझे सूचित करें। आशा है जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ होंगे ।

मोहनदासके वन्देमातरम्


मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०१३) से ।
सौजन्य : गंगाबहन वैद्यSmallrefs}}

  1. १. यह जी० नलगोलाके ५ जुलाई, १९२४ के तारके उत्तरमें दिया गया था। तार इस प्रकार है : "आपको ढाका राष्ट्रीय महाविद्यालयके बारेमें प्रफुल्ल घोषसे जानकारी मिल चुकी है। तार दें, हमें क्या करना है। छात्र।" देखिए “तार: ढाका राष्ट्रीय महाविद्यालयके छात्रोंको”, ९-७-१९२४ या उसके पश्चात् ।
  2. २. पत्रमें गंगाबहनके आश्रममें आनेके जिक्रसे लगता है कि पत्र २२ जुलाई, १९२४ से पहले लिखा गया था । देखिए “पत्र : गंगाबहन वैद्यको ", २२-७-१९२४ । आषाढ़ सुदी ५, इस वर्षे ७ जुलाई, १९२४ को पड़ी थी ।