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यह कहा जाता है कि वकीलोंने जीविकोपार्जनकी कोई व्यवस्था न हो पानेके कारण पुनः वकालत शुरू कर दी, वहाँ दूसरी ओर खादी बोर्डको वेतन लेकर काम करनेवाले अच्छे कार्यकर्त्ता मिलना मुश्किल हो रहा है ?

एक और भी बात जिसकी ओर ध्यान देना जरूरी है । जब कोई आदमी राष्ट्रकार्यके लिए चाहे वेतन लेकर या बिना वेतनके -- स्वेच्छा से अपनी सेवाएँ प्रदान करता है तो वह किसी भी साधारण कर्मचारीपर लागू होनेवाले सभी अनुशासनों और नियमोंके अधीन हो जाता है। स्वयंसेवकोंपर तो अनुशासन और भी कड़ाई के साथ लागू होता है। इसलिए उसे छुट्टी लिये बिना कामपर गैरहाजिर नहीं होना चाहिए; बल्कि उसे अनुमति लिये बिना जेल जाने के लिए भी कोई कदम नहीं उठाना चाहिए। सविनय अवज्ञा एकाधिक अर्थों में विनयपूर्ण होनी चाहिए। उसमें मिथ्या साहस प्रदर्शन और आवेश आवेगके लिए स्थान नहीं है । सविनय अवज्ञाका मतलब है अनुशासनबद्ध विवेकपूर्ण, विनम्र बलिदान ।

स्त्रियाँ आगे बढ़े

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी एक सदस्या श्रीमती हेमप्रभा मजुमदार मेरे नाम एक पुर्जा छोड़ गई है; उसमें लिखा है :

मेरा खयाल है कि जबतक हमारे देशकी महिलाएँ कताईका काम खास तौरपर अपने जिम्मे नहीं लेंगी, तबतक यह आन्दोलन सफल नहीं हो सकता । इसलिए प्रार्थना है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्योंसे खास तौर पर यह अनुरोध किया जाये कि वे स्त्रियोंकी कताईकी तालीमका विशेष प्रबन्ध करें ।

मैं दिलसे इसकी ताईद करता हूँ और अपनी तरफसे इतना और कहना चाहता हूँ कि और भी बहुत-सी बातें भारतकी महिलाओंकी सहायताके बिना असम्भव हैं । सवाल सिर्फ यही है कि इस कामको कौन और किस तरह करें। बहुत-सी बहनें काम कर रही हैं पर अभी और भी बहनोंकी आवश्यकता है । पुरुष कार्यकर्त्ताओंकी तरह अपना पूरा समय देनेवाली स्त्री कार्यकत्रियाँ भी होनी चाहिए। मैं जानता हूँ कि कुछ ऐसी स्त्रियाँ इस क्षेत्रमें काम कर रही हैं, पर उनकी संख्या बहुत ही कम है। मैं इस बहनको निमन्त्रण देता हूँ कि वे इस कार्यका आरम्भ करें। इस उद्देश्यसे उन्हें स्वयं कताईके लिए कुछ समय अलग बचाकर रखना चाहिए और धुनाई, कपास की किस्म पहचानना, सूतका नम्बर पहचानना और उसकी मजबूती परखना सीखकर इस कलामें प्रवीणता प्राप्त कर लेनी चाहिए। वे इसका शुभारम्भ इस राष्ट्रीय व्यवसायके प्रति अपने पड़ोसियोंमें रुचि पैदा करके कर सकती हैं। यदि वे ऐसा करेंगी तो देखेंगी कि दायरा बढ़ रहा है। बेशक मैं पतियोंसे प्रार्थना करूँगा कि वे अपनी पत्नियोंको इस कामका संगठन करने दें । बंगालका मामला शायद सबसे मुश्किल है, क्योंकि वहाँ क्या हिन्दू और क्या मुसलमान, सब महिलाएँ परदा रखती हैं। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि जो कोई इस कामको श्रद्धा और उत्कटताके साथ शुरू करेगा, उसे वह बड़ा सरस और राष्ट्रीय दृष्टिसे लाभदायक जान पड़ेगा ।