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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय बकरीद

बकरीद

बकरीद के त्यौहारका समय हिन्दुओं और मुसलमानों, दोनोंके लिए चिन्ताका होता है । यदि हम परस्पर सहिष्णुता और एक-दूसरेके प्रति आदरका भाव रखें तो ऐसी स्थिति न आये । मुसलमान पशुओं की कुर्बानीमें विश्वास रखते हैं और इसलिए वे गायकी भी कुर्बानी करते हैं । फिर उसमें हिन्दुओंको क्यों दस्तन्दाजी करनी चाहिए ? इसी तरह मुसलमानोंको भी गायकी कुर्बानी और सो भी जान-बूझकर इस ढंगसे क्यों करनी चाहिए, जिससे हिन्दुओंकी भावनाओंको आघात पहुँचे । क्यों नहीं मुसलमान १९२१ का वहीं शराफत-भरा व्यवहार करते जब उन्होंने अपने हिन्दू पड़ौसियोंकी भावनाका खयाल रखनेके लिए खुद ही गायोंको बचानेका भार अपने सिर ले लिया था? उस अवसरपर दरहकीकत उन्होंने सैकड़ों गायोंको बचाया भी, जिसे कि खुद हिन्दुओंने भी तसलीम किया । निश्चय ही बकरीदके दिन मुसलमानोंको अपने मनसे हिन्दुओंके प्रति प्रेमभाव जगानेके लिए खास तौरपर कोशिश करनी चाहिए और हिन्दुओंको भी चाहिए कि मुसलमानोंके धार्मिक रस्म- रिवाजका वे लिहाज रखें, भले ही वे उन्हें कितने ही अप्रिय क्यों न हों। क्या वे खुद भी मुसलमानोंसे मूर्तिपूजाके विषयमें यही अपेक्षा नहीं रखते हालाँकि उन्हें यह बहुत अप्रिय है ? परमात्मा हमारे अपने काम के लिए हमें ही जिम्मेवार मानेगा, हमारे पड़ोसीके कामके लिए नहीं ।

फिर बाराबंकीके बारेमें

बाराबंकी सम्बन्धी मेरी टिप्पणीपर मुझे दो ऐसे पत्र मिले हैं, जिनसे उस विषयपर बहुत प्रकाश पड़ता है। उनमें एक मुसलमान सज्जनका लिखा हुआ है और दूसरा हिन्दू सज्जनका । यद्यपि वे बिलकुल स्वतन्त्र रूपसे अलग-अलग लिखे गये हैं तो भी उनमें जिन तथ्योंका विवेचन है उनके बारेमें पत्र- लेखक एकमत हैं । दोनोंमें कुछ नई बातें हैं। दोनों निष्पक्ष दृष्टिसे लिखे हुए दिखाई देते हैं। मैं उन चिट्ठियोंको इसलिए प्रकाशित नहीं कर रहा हूँ कि उनके प्रकाशनसे कोई लाभ नहीं होनेवाला है। जो बातें उनमें बताई गई हैं, उनसे लेखकोंको छोड़कर किसीकी नेकनामी नहीं होती। फिर भी एक बात बिलकुल साफ है कि नगरपालिकापर कब्जा करना वहाँके हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच वैमनस्यका कारण बन गया है। यदि असहयोगकी बात जाने दें तो भी मुझे तो यह बिल्कुल साफ दिखाई देता है कि जहाँ हिन्दुओं और मुसलमानोंमें हार्दिक एकता न हो, असहयोगी, फिर वे चाहे हिन्दू हों या मुसलमान, नगरपालिका या जिला बोर्डोंमें प्रवेश न करें । जहाँ एक पक्ष उनमें जाने के लिए तैयार हो, वहाँ भी दूसरे पक्षके लोग उससे दूर ही रहें। कहते हैं, नगरपालिकाका यह अशोभन विवाद शुरू होनेसे पहले तक दोनों जातियोंके लोग पूरे मेल-मिलापके साथ रहते थे । पर अब इस चुनावके कारण केवल नगरपालिकाके प्रतिपक्षियोंके बीच ही नहीं बल्कि सारे शहरमें तनाव फैल गया है । मुझे पूरी आशा है कि बाराबंकी नगर अपनी पुरानी साम्प्रदायिक सद्भावनाको फिरसे स्थापित करके अपने खोये हुए यशको पुनः प्राप्त कर लेगा ।