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जेलके अनुभव -- १०

भेज दिये जानेको वह बहुत उत्सुक था । मैंने उसकी मदद करनेकी खूब कोशिश की । मैंने उसके लिए कई अर्जियाँ[१] तैयार की थीं। सुपरिटेंडेंटने भी भरसक पूरा प्रयास किया; परन्तु बात अदन जेलके अधिकारियोंके हाथमें थी । उसे आशा दिलाई गई थी कि वर्ष (१९२३ ) का अन्त होनेसे पहले उसे छोड़ दिया जायेगा । मैं उम्मीद करता हूँ कि वह इस समय जेलके बाहर होगा। मैंने उसकी जो थोड़ी-बहुत मदद की, उससे तो वह मेरे और भी नजदीक आ गया तथा हम दोनोंके बीचका स्नेह गाढ़ा हो गया । आदनको बादमें हमारे विभागसे दूसरे विभागमें बदल दिया गया; विदाका वह प्रसंग काफी कठिन सिद्ध हुआ था । एक और बातका उल्लेख करना भी मुझे नहीं भूलना चाहिए। जब मैं जेलमें कातने और पींजने के कामका संगठन कर रहा था तब अदन एक हाथसे लूला होते हुए भी बड़े परिश्रमके साथ पूनियाँ बनाने में सहायता करता था। समय पाकर वह इस कलामें प्रवीण हो गया; उसे इसमें रस भी बहुत आता था ।

जैसे शाबास खाँकी जगह अदन आया था उसी प्रकार हरकरनकी जगह भीवा आया था। हमें यह जानकर खुशी हुई कि भीवा महाराष्ट्रीय महार अर्थात् अछूत जातिका था । हम जेलमें जितने भी वार्डरोंके संसर्गमें आये, उन सबमें शायद यह भीवा ही सबसे अधिक उद्योगी था । पाठकोंको सुनकर आश्चर्य होगा कि जेल भी इस अस्पृश्यता कलंकसे मुक्त नहीं रह पायी है। बेचारा भीवा हमारी कोठरियों में घुसते हुए बहुत हिचकिचाता था । वह हमारे बर्तनोंको हाथ नहीं लगाता था । हमने उसे तुरन्त आश्वासन दिया कि अस्पृश्योंके लिए हमारे मनमें किसी भी प्रकारकी घृणा नहीं है; इतना ही नहीं परन्तु हम इस कलंकको धोनेके लिए भरसक सब-कुछ कर रहे हैं। भाई शंकरलालने तो उसके साथ खास तौरपर दोस्ती कर ली और वह देखते-ही-देखते हमारे साथ पूरी तरह हिलमिल गया । उन्होंने भीवाको अपने साथ इस हदतक घनिष्ठ हो जाने दिया कि वह शंकरलाल द्वारा कठोर शब्द कहे जानेपर अपना रोष प्रकट करता और अन्तमें शंकरलाल उससे माफी तक माँगते । शंकरलालने उसे पढ़ने को भी राजी किया और कातना भी सिखाया। परिणाम यह हुआ कि बहुत थोड़े समयमें भीवा कातनेमें निपुण हो गया और इस काममें उसे इतना रस आने लगा कि उसने बुनाई सीख लेने और जेलसे छूटने के बाद इस धन्धे से ही अपना गुजारा करनेका विचार कर लिया । जेलमें मैंने सुबह सवा चार बजे गरम पानी में नींबू निचोड़कर पीनेकी आदत डाल ली थी । शंकरलाल चार बजे उठकर मेरे लिए गरम पानी तैयार करने लगे। मैंने उन्हें रोका, तब शंकरलालने चुपकेसे भीवाको यह काम सिखा दिया । कैदी जेलमें जाग तो जल्दी जाते हैं, परन्तु चार ही बजे वे अपनी चटाई (यही उनका बिस्तर होता है) छोड़कर खड़े हो जाते हों, सो नहीं होता । परन्तु भीवाने तो शंकरलालके सुझावका तत्काल पालन करना शुरू कर दिया। लेकिन रोज चार बजे भीवाको जगानेका काम तो शंकरलालके ही जिम्मे रहा । जब भीवा चला गया ( उसे खास तौरपर सजा कम करके छोड़ दिया गया

  1. १. ये प्राप्त नहीं हैं ।