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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

था) तब अदनने इस कामका भार सँभाला। मैंने सोचा था, इतना काम मैं स्वयं कर लूंगा। परन्तु वह मुझे कैसे करने देता ? इस प्रकार तड़के ही गरम पानी देनेकी यह परम्परा भाई शंकरलालके छूट जाने के बाद भी चालू रही। वार्ड छोड़कर जानेवाला प्रत्येक पुराना वार्डर नये आये हुए वार्डरको इन सब रहस्योंकी दीक्षा देकर जाता । कहने की जरूरत नहीं कि कैदीके दिन-भरके अनिवार्य कामोंमें इस प्रातःकालीन कामका समावेश नहीं होता था और जेलके नियमके अनुसार कैदियोंको वार्डरोंकी जगह मिल जाती है तो वे स्वयं काम करनेके कर्त्तव्यसे मुक्त हो जाते हैं। उन्हें तो आज्ञाएँ ही देना होता है ।

परन्तु जैसे प्राणप्रिय मित्रोंसे भी जीवन में कभी-न-कभी बिछुड़ना होता है वैसे ही एक दिन भीवाने हमसे राम-राम की । शंकरलालकी दी हुई खादीकी टोपियाँ, खादी के कुरते, खादीकी धोतियाँ और एक खादीका खेस लेनेकी उसे परवानगी मिल गई थी। उसने बाहर जाकर खादीके सिवा और कुछ भी न पहननेका वचन दिया था। मैं आशा रखता हूँ कि यह नेक भीवा जहाँ कहीं होगा अपनी प्रतिज्ञाका पालन कर रहा होगा ।

भीवाके बाद ठमू आया । वह भी महाराष्ट्रीय ही था । ठमू सौम्य प्रकृतिका वार्डर था। उसमें बहुत शऊर नहीं था। बताया हुआ काम वह कर देता, परन्तु अपने मनसे किसी कामको कर डालनेमें उसे रुचि नहीं थी । इसलिए उसकी और अदनकी ठीक पटती नहीं थी । परन्तु ठमू डरपोक होने के कारण अन्तमें हमेशा अदनसे दब जाता था । ठमूकी तो हमारे यहाँ ऐसी मौज थी (मौज तो सभीकी होती थी ) कि वह हमसे जुदा होना ही नहीं चाहता था । इसलिए बदली होने के बजाय वह अदन की धौंस सहनेको तैयार था । ठमू अदनके आने के बहुत दिनों बाद आया था । इसलिए हमारे यहाँ अदन 'सीनियर' माना जाता था । 'सीनियर और जूनियर' होने के ये काल्पनिक विचार जेल-जैसे छोटे-छोटे स्थानोंमें किस प्रकार पैदा हो जाते हैं, यह देखने लायक होता है । यरवदा तो हमारे नजदीक एक दुनिया ही थी या यों कहिए कि पूरी दुनिया । प्रत्येक छोटी-मोटी लड़ाई अथवा छोटे-मोटे झगड़े भी जेलमें एक बड़ी घटना माने जाते हैं और कैदी लोग उसकी चर्चा दिन-भर दिलचस्पीके साथ करते रहते हैं और कभी-कभी यह चर्चा कई दिनोंतक चला करती है । यदि जेल अधिकारी जेल में कैदियोंको केवल कैदियोंके ही इस्तेमाल में आनेवाले तथा उन्हींके द्वारा संचालित होनेवाले 'जेल अखबार' निकालनेकी अनुमति दें तो यह निश्चित है कि कोई भी कैदी उसे बिना पढ़े नहीं रहेगा और फिर उसमें खबरें भी बड़ी मजेदार आयेंगी । बढ़िया पकी हुई दालकी खबरें, अच्छी तरह साफ की हुई सब्जियोंकी खबरें, कैदियोंकी आपसी तू-तू, मैं-मैं, इत्यादि चटपटी खबरें और एकाध बार मारपीट और परिणाम स्वरूप जेल सुपरिटेंडेंट के सामने होनेवाले 'मुकदमों' के हालचाल इत्यादि गरमागरम खबरें कैदी लोग उतनी ही उत्सुकतासे बाँचेंगे, जितनी उत्सुकतासे बाहरके लोग बड़े-बड़े भोजों अथवा लड़ाइयोंकी खबरें पढ़ते हैं। मैं विधानसभाके अपने उत्साही मित्रोंके सामने यह सुझाव पेश करता हूँ कि यदि वे चाहें तो एक बहुत बढ़िया काम यह कर सकते हैं कि विधानसभा में इस आशयका बिल पेश करें जिसके