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जेलके अनुभव -- १०

अनुसार प्रत्येक जेलके सुपरिटेंडेंटको यह आदेश दिया जाये कि वे अमलदारोंके कठोर नियन्त्रणमें ही सही, कैदियोंको केवल उनके अपने उपयोगके लिए एक अखबार सम्पादित और प्रकाशित करनेकी इजाजत और सुविधा दें।

खैर, हम फिर ठमूकी बातपर आयें । यद्यपि वह शरीरसे ढीला-ढाला था, फिर भी भलमनसाहत में वह उससे पहले आये हुए अन्य वार्डरों-जैसा ही था । चरखेको तो उसने ऐसी सुगमतासे सीख लिया जैसे मछली पानी में तैरने लगती है। एक सप्ताह में ही वह मुझसे भी अधिक समान सूत कातने लगा । और एक महीने के भीतर शिष्यने गुरुको बिलकुल ही पछाड़ दिया । यहाँतक कि ठमूके बढ़िया सूतसे मुझे ईर्ष्या होने लगी और ठमूकी प्रगति जिस तेजी से हो रही थी उसे देखकर मैं समझ गया कि मेरी मन्दगति के लिए मैं ही दोषी हूँ। मेरी समझमें यह भी आ गया कि साधारण मनुष्य अधिक से अधिक एक महीने में आसानीसे बहुत बढ़िया सूत कातने लग सकता है। मैंने जिन-जिनको कातना सिखाया वे सब देखते-देखते मुझसे आगे बढ़ गये । भीवाकी तरह ही चरखा ठमूके लिए भी एक सुखद साथी बन गया । उसके मधुर और मन्द संगीतमें वे अपने प्रियजनोंके विछोहका दुःख भूल जाते थे । बाद में चरखा चलाना ठमूके लिए सुबहका सबसे पहला काम हो गया। वह रोज चार घंटे कातता था ।

जब हमें यूरोपीय वार्डमें भेजा गया तब कई परिवर्तन हुए। सबसे पहले वार्डर बदले गये और पहला नम्बर अदनका आया । यह तबादला यद्यपि हम लोगों को पसन्द नहीं आया परन्तु हमने उसे धीरजके साथ स्वीकार किया। फिर ठमूकी बारी आई। बेचारा तबादलेकी बात सुनते ही रो पड़ा। उसने मुझे अपने पास ही रख लेनेका प्रयत्न करने को कहा, परन्तु मैं यह कैसे कर सकता था । मैंने सोचा कि यह मेरे क्षेत्र से बाहरकी बात है। जेल अधिकारियोंको चाहे जिस कैदीको चाहे जहाँ ले जानेका पूरा हक है । अदन और ठमके स्थानपर कुन्ती नामक एक गोरखा और गंगप्पा नामक एक कन्नड़ कैदी आया। गुरखा सारी जेलमें 'गोरखा' नामसे ही मशहूर था। वह कम बोलनेवाला था, परन्तु बादमें खूब हिलमिल गया। शुरूमें तो वह अपनी ठीक स्थिति ही नहीं समझ पाया था । शायद उसने सोचा हो कि हम कोई जरा-सा बहाना पाकर उसकी शिकायत कर देंगे और उसे मुसीबतमें डाल देंगे। परन्तु जब उसने देखा कि हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है, तब वह निकट आ गया । परन्तु थोड़े दिनोंमें ही उसका भी तबादला हो गया। गंगप्पाका थोड़ा-सा वर्णन जेलके पत्र-व्यवहारकी भूमिकाके रूपमें मैं कर चुका हूँ। वह प्रौढ़ अवस्थाका था । जेल-नियमोंका बारीकसे-बारीक पालन और अपने नियत कर्त्तव्यके प्रति उसकी जबरदस्त निष्ठा, इन दो चीजोंने मेरे मनमें उसके प्रति प्रशंसाका भाव उत्पन्न कर दिया था। अधिकारी उसे जो भी काम करनेका हुक्म देते उसे वह दिलोजान से करता था। जो काम करना उसका फर्ज न हो उन्हें भी वह स्वेच्छापूर्वक अपने सिरपर ले लेता । निठल्ला तो शायद ही कभी बैठता हो। उसने मेरे साथियोंके लिए चपातियाँ बेलना और सेंकना सीख लिया। अपने प्रति उसका प्रेम तो मैं कभी नहीं भूल सकता। गंगप्पाने मेरी जितनी जी-तोड़ सेवा की, उससे अधिक स्वयं