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१९७. जब या संयम ?

एक मित्रने बहुत ही कठिन प्रश्न उठाया है । वे कहते हैं :

"यदि जबरदस्ती किसी बातका सुधार करना अहिंसा-नीतिके विपरीत हो तो कानूनके द्वारा किसीसे शराब छुड़वाना भी जबरदस्ती मानी जानी चाहिए।"

इसमें थोड़ा भ्रम है । उक्त मित्रका खयाल यह मालूम होता है कि हर कानून जबरदस्तीका सूचक है; परन्तु हर कानून बलात्कारका सूचक नहीं है। स्वार्थकी सिद्धिके निमित्त और किसीको कष्ट पहुँचाने के उद्देश्यसे दुःख देना हिंसा है। इसके खिलाफ यदि किसीको उसके सुखके लिए कष्ट देनेका अवसर उपस्थित हो तो स्थिरचित्तसे और निःस्वार्थ भावसे ऐसा करना अहिंसा हो सकती है। मैं चोरको चोरीके भयसे बचने अर्थात् स्वार्थ के लिए सजा दूं तो यह हिंसा है। शल्य चिकित्सक बीमारको उसके सुखके लिए नश्तर लगाकर दुःख पहुँचाता है, किन्तु यह अहिंसा है । इस दृष्टिसे चोरको पकड़कर उसे दुःख देनेके लिए नहीं बल्कि उसे सुधारनेके उद्देश्यसे सुधार-गृहमें रखना और उसके प्रति दयाभाव दिखाकर उसके लिए ऐसा वातावरण मुहैया करना कि वह सुधर जाये, बलात्कार अथवा हिंसा नहीं है। बल्कि यह तो समाजका या शासनकर्त्ताका संयम है। ऐसा शासनकर्त्ता चोरको अभियोगके भयसे बचा लेता है, यह उसका विशेष उपकार है । इसी तरह शराबियोंको कोड़े लगानेका कानून हिंसा है; परन्तु कानूनके द्वारा शराबकी दूकानोंको बन्द करके शराब पीनेवालोंकी आँखोंके सामनेसे प्रलोभन हटा लेना, संयम और अहिंसा [ का पाठ पढ़ाना ] है । इसमें शुद्ध प्रेमके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है । इसी तरह यदि मैं धमकी देकर किसीसे विदेशी कपड़ा छुड़वाऊँ तो यह बलात्कार है ? परन्तु कानून बनाकर विदेशी कपड़ेका आयात रोकना संयम है। इसमें भी शुद्ध प्रेमके सिवा और कुछ नहीं है । परन्तु विदेशी कपड़े पहननेवालोंको कानूनके द्वारा सजा देना बल-प्रयोग कहा जायेगा। यह समाजका रोष हुआ ।

इससे यह प्रकट होता है कि हर कानून बलात्कारका चिन्ह नहीं है । हाँ, आधुनिक कानूनों में बलात्कार होता है; क्योंकि उनको बनानेवालेका हेतु भय उत्पन्न करके उसके द्वारा समाजको गुनहगारोंसे बचाना होता है। उनका हेतु गुनहगारका सुधार करना नहीं होता ।

अब सिर्फ एक प्रश्न रह जाता है । सुधार जबरन भी होते देखे जाते हैं। चोरीकी आदत ठोंक-पीटकर छुड़ाई जाती है । बहुतसे लोग कहते हैं और मानते हैं कि मारपीटसे बहुतेरे बच्चे सुधरे हैं । हम ऐसी धारणाके ही कारण आज संसारमें पापोंका पुंज बढ़ता हुआ देखते हैं । बलात्कारसे मनुष्यकी आत्माका हनन होता है और उसका असर केवल हन्तापर ही नहीं, बल्कि उसकी सन्तानपर और समूचे वातावरणपर भी पड़ता है । बलात्कारके तमाम परिणामोंकी, और बहुत लम्बे काल