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बाल-हत्या

तकके परिणामोंकी, जांच की जानी चाहिए। बलात्कार दीर्घकालसे चला आता है । फिर भी हमने जिन-जिन दोषोंकी निवृत्तिके लिए इसका उपयोग किया है वे दोष निर्मूल हुए दिखाई नहीं देते। पहले चोरी छुड़ानेके लिए बहुत कड़ी सजाएँ दी जाती थीं। तमाम अवलोकन-शास्त्रियोंका यह मत है कि उससे चोरियाँ कम नहीं हुई हैं । ज्यों-ज्यों सजामें दयाभाव शामिल होता गया त्यों-त्यों चोरी कम होती गई । गुनाहकी सजाएँ देनेके बजाय गुनाह करनेके कारणोंको खोजकर निर्मूल करने से वे कम होते हैं ।

परन्तु हिंसाजनित हानियोंका सबसे बड़ा सबूत यह है कि जहाँ हिंसासे सुधार करनेका रिवाज पड़ जाता है वहाँ लोग मंद और जड़ बन जाते हैं और हर बातमें सजासे ही काम लेनेका आलस्य-भरा और असभ्यतापूर्ण उपाय ही अपनाया जाता है । इससे मनुष्य धीरज और प्रयत्न -- अपने इन दोनों कीमती गुणोंको खो बैठता है । अत: चाहे हमें यह भासित भी होता हो कि जबके प्रयोगसे शान्ति मिलती है तो भी उसका समग्र परिणाम बुरा ही होता है, यह बात अनेक प्रमाण देकर सिद्ध की जा सकती है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १३-७-१९२४

१९८. बाल-हत्या

नीचे दिया गया पत्र[१] मेरे पास बहुत दिनोंसे रखा हुआ है :

मैंने इस पत्र में से ब्यौरेकी बहुत-सी बातें निकाल दी हैं । इसमें जो दोष पाटी-दारोंमें बताये गये हैं वे कहाँतक सच हैं यह तो पाटीदार लोग ही जानें। मेरा उन लोगोंसे अच्छा परिचय है; किन्तु मेरा काम गुणोंको जानना है; इसलिए मैंने दोषोंको जाननेकी कोशिश नहीं की और न वे किसीने मुझे बताये ही ।

परन्तु यदि इस चिट्ठीमें लिखी बातें सच हों तो वे लज्जाजनक हैं। लड़कीका जन्म अपशकुन-सूचक है, यह पापपूर्ण अन्धविश्वास हम लोगोंमें व्याप्त है । स्वार्थके अलावा इसका दूसरा कोई कारण नहीं दिखाई देता । इस बह्मका जन्म सम्भवतः किसी भयानक कालमें हुआ होगा । जब कन्याएँ हरण की जाती रही होंगी तब लोगों-का कन्या- जन्मसे घबड़ाना कुछ समझमें आ सकता है । परन्तु अब यह भय प्रायः नहीं रह गया है। यदि यह भय कुछ शेष भी हो तो उसका उपाय किया जा सकता है । सन्तानके जन्मसे हर्ष होनेका कोई कारण हो तो फिर लड़का हो या लड़की दोनों एकसे प्रिय होने चाहिए। संसारके लिए दोनों अत्यन्त आवश्यक हैं । वे एक-दूसरेके पूरक हैं। ऐसी हालत में एकके जन्मसे प्रसन्न होना और दूसरेके जन्मसे दुःखी होना हानिकर है । एक सुव्यवस्थित समाजमें दोनोंकी संख्या बराबर होनी चाहिए ।

  1. १. यहाँ नहीं दिया गया है।