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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कन्याके पिताको शादी में बहुत खर्च करना पड़ता है । यह रिवाज भी हिन्दू जातिमें आम है । सम्भव है कि इसने पाटीदारोंमें प्रचण्ड रूप धारण कर लिया हो । इस खर्चको निर्मूल करना अत्यन्त आवश्यक है। इसके बारेमें दो मत नहीं हो सकते । बहुत खर्चीले रिवाजोंसे बेचारे गरीब माँ-बापोंकी बहुत दुर्गत होती है। उनके लिए लड़कियोंकी शादी करना असम्भव-सा हो जाता है और फलस्वरूप लड़कियोंको जहर देनेकी प्रथा पड़ जाती है ।

सुणावके अध्यापककी मिसाल[१] अनुकरणीय है । इस खादी के युगमें तो खादीकी वर-मालासे ही शादी हो सकती है ।

लेखकने सारा दोष बूढ़े लोगोंके ही सिर मढ़ा है। यह बात कुछ अत्युक्तिपूर्ण मालूम होती है । परन्तु यदि बूढ़े लोग सचमुच मिथ्याभिमानके कारण किसीकी न सुनते हों तो युवक-मण्डलको बागडोर अपने हाथमें लेनी चाहिए। वे खर्चीले विवाहों में शरीक होनेसे साफ इनकार कर दें। इससे विवाहोंका खर्च एकदम कम हो जायेगा । इसमें न तो कोई अविनय है और न किसी बड़ी कोशिशकी जरूरत । खेदकी बात तो यह है कि युवक आजतक ऐसी बातोंको अपने क्षेत्र से बाहर मानते आये हैं। उन्होंने अपनी शिक्षाका उपयोग अपने समाजके सुधारके लिए बिलकुल ही नहीं किया है ।

परन्तु अब जमाना बदल गया है। युवकवर्ग खुद विचार करने लगा है । अतः यह सुधार किसी बड़े प्रयासके बिना ही हो सकता है। आवश्यकता है सिर्फ अटल निश्चय की ।

मुझे तो बारह गाँवोंके[२] भीतर विवाह करनेकी मर्यादा भी खलती है। मैं सिर्फ चार वर्णोंको मानता हूँ । उपवर्गोंको उन्हींमें मिला दिया जाना चाहिए। परन्तु इसमें समय लगेगा। फिर भी पाटीदारोंका गाँवोंके भी विभाग करके शाखाएँ बनाना वर्ण-विभागकी अतिशयता है। सारे गुजरात के जिन पाटीदारोंमें रोटी-व्यवहार है उनमें बेटी व्यवहार क्यों नहीं होना चाहिए ? बारह गाँवोंकी मर्यादा बाँधनेका कारण संयम नहीं, बल्कि मिथ्याभिमान ही दिखाई देता है । जहाँ मिथ्याभिमान होता है वहीं पाप होता है। इसलिए समझदार और प्रौढ़ पाटीदारोंको उचित है कि वे सब तुरन्त मिलकर यह आवश्यक सुधार करें और इस बालहत्याको तथा इसके कारणरूप पूर्वोक्त क्रूर रिवाजोंको समाप्त करें ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १३-७-१९२४
  1. १. इस पाटीदार अध्यापकके, जो सुणावकी राष्ट्रीयशाला में पढ़ाता था, विवाह में केवल दस बराती थे। वर और वधू दोनोंने विवाहके समय अपने हाथके कते सूतके बने कपड़े पहने थे। इसके विवाहमें कुल सौ रुपये खर्च आया था ।
  2. २. केवल बारह गाँवोंके दायरेमें अपने ही समाजमें विवाह करनेकी प्रथा; जो पाटीदारोंमें प्रचलित थी ।