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१९९. पत्र : इन्द्र विद्यावाचस्पतिको

आषाढ़ सुदी १४ [ १५ जुलाई, १९२४ ]

भाई इन्द्र,

तुमारा खत मीला। मैंने थोड़ा सा लीखा उसके बाद तुमारा खत पहोंचा । लेकिन मैंने कोई ऐसी बात नहि लिखी है जिससे किसीको हानी पहोंचे। मेरी उमीद है कोई अब कचेरीमें नहिं जायेंगे। मामला तो शांत हो गया होगा ।

मोहनदासके आशीर्वाद

श्री इन्द्र विद्यावाचस्पति
'अर्जुन' आफिस
दिल्ली
मूल पत्र ( जी० एन० ७१९८) तथा सी० डब्ल्यू० ४८५७ से ।
सौजन्य : चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

२००. पत्र : कुँवरजी खेतशी पारेखको

आषाढ़ सुदी १४ [१५ जुलाई, १९२४ ][१]

चि० कुँवरजी,

तुम्हारे पूज्य मामाके देहान्तका समाचार पढ़कर खेद हुआ। तुम्हें उनका बहुत बड़ा सहारा था, यह मैं जानता हूँ; लेकिन जन्म और मरण तो हमारे साथी ही हैं, ऐसा समझकर हमें एकका हर्ष और दूसरेका शोक नहीं मानना चाहिए ।

मोहनदासके आशीर्वाद

चि० कुँवरजी खेतशी
मार्फत पारेख गोकुलदास त्रिभुवन
मोरवी
मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ६७६ ) से ।
सौजन्य : नवजीवन ट्रस्ट
  1. १. डाकखाने की मुहर में १६ जुलाई, १९२४ पड़ी है ।