पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/४२५

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२०३. पत्र : गंगाबहन वैद्यको

आषाढ़ सुदी १५ [१६ जुलाई, १९२४][१]

पूज्य गंगाबहन,

आपका पत्र मिला। जब आपको क्रोध आये तब आप अपने मनमें सोचें, मेरा यह सब क्रोध किसपर है ? आत्मा अवश्य ही निर्विकार है, वह क्रोध किसपर कर सकती है ? क्रोधको शान्त करनेका बाह्य उपाय मौन है। जब क्रोध शान्त हो जाये आपको तभी बोलना चाहिए।

आपको पिछली बातें भूल जानी चाहिए। हम जिस तरह उच्छिष्ट अन्न नहीं खाते उसी तरह हमें बीती बात याद करके उनका मीठा-कड़वा स्वाद नहीं लेना चाहिए । हमें केवल इतना ही अधिकार है कि हम वर्तमानको सँभाल लें। हमें भविष्यका विचार भी न करना चाहिए।

आप क्रोध करके अथवा रूठकर बोरीवली नहीं छोड़ सकतीं; इसलिए यदि आपके पुत्रका बहुत आग्रह है तो आप उसे मानकर उसके पास हो आयें। आपको उसका अथवा बहूका त्याग तो कदापि नहीं करना है। देना है जिससे उसके दिलको ठेस न लगे और आपका मन आपको तो बहूको रास्ता भी दुःखित न हो।

मैं इस पूरे महीने हर हालतमें यहीं हूँ । अगस्त के पहले सप्ताहमें भी यहीं हूँगा ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०१५) से ।
सौजन्य : गंगाबहन वैद्य

२०४. पत्र : वसुमती पण्डितको

आषाढ़ सुदी १५ [१६ जुलाई, १९२४][२]

चि० वसुमती,

तुम्हारा पत्र मिला । जो नया उपचार चल रहा है; उसका क्या असर हुआ है, इस बारेमें लिखती रहना । मुझे पूरा अगस्त शायद यहीं बिताना पड़े । तुम्हारा हजीरा जाना मुझे बहुत अच्छा लगेगा। मैं वहाँ जानेके लिए क्या बन्दोबस्त करूँ ?

  1. १. इस पत्रमें प्रेषीके (आश्रमके लिए) बोरीवलीका अपना घर छोड़नेकी जो चर्चा की गई है उससे स्पष्ट हो जाता है कि यह पत्र १९२४ में लिखा गया था। उस वर्षं भाषाद सुदी १५, १६ जुलाई, १९२४ की थी ।
  2. २. डाकखानेकी मुहर में १७ जुलाई, १९२४ पड़ी है ।