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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पंजाब तो अक्तूबर मासके बाद जाना ठीक होगा। वहाँ फल क्या-क्या मिलते हैं और तुम क्या-क्या फल खाती हो ?

बापूके आशीर्वाद

बहन वसुमती
मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४५० ) से ।
सौजन्य : वसुमती पण्डित

२०५. उत्तर : मथुरादास त्रिकमजीके प्रश्नका[१]

[ १६ जुलाई, १९२४ के आसपास ][२]

यदि कांग्रेस मुझे निकाल दे तो मुझे उसे नम्रभावसे सहन कर लेना चाहिए; लेकिन मैं प्रहार किसी भी पक्षपर नहीं कर सकता ।

[ गुजराती से ]
बापुनी प्रसादी

२०६. टिप्पणियाँ

भारत-कोकिला सरोजिनी

'यंग इंडिया' के पाठक भारतकी इस प्रतिभाशालिनी पुत्रीके आश्चर्यजनक कार्यके बारेमें दक्षिण आफ्रिकासे मेरे पास आये अनेक पत्र[३]पढ़ चुके हैं। श्री पी० के० नायडूसे प्राप्त एक पत्र में से यह एक वाक्य पाठकोंके सामने पेश करता हूँ ।


यहाँ उन्होंने आश्चर्यजनक कार्य किया है। उनके आकर्षक व्यक्तित्व तथा सफल वक्तृत्वसे सैकड़ों ही नहीं, हजारों यूरोपीय सज्जन हमारे मित्र बन गये। और उसने स्मट्सकी सरकारको भी हिला दिया ।

इसलिए भारत उनका सम्मान करके अपना ही सम्मान कर रहा है । जहाँतक मेरा ताल्लुक है मैं तो यही कहूँगा कि उनकी मौजूदगीमें मुझे राहत महसूस होती है। क्योंकि, यद्यपि मैं समझता हूँ कि मैं हिन्दू-मुस्लिम एकताको दृढ़ करनेमें अपना विनम्र योगदान दे सकता हूँ तथापि कई बातोंमें वे इस क्षेत्रमें मुझसे कहीं बढ़कर हैं। मेरी

  1. १. मथुरादासने कांग्रेसके भीतर मतभेद होनेके कारण गांधीजीसे कांग्रेस छोड़ने की अपील की थी। मौन दिवसपर लिखे गये ये शब्द उसीके उत्तर में थे ।
  2. २. साधन-सूत्रके अनुसार ।
  3. ३. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ ४३६-३७।