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टिप्पणियाँ

अपेक्षा उनका अधिक मुसलमानोंसे अन्तरंग परिचय है । उनकी पहुँच उनके हृदयों तक है; किन्तु मैं ऐसा दावा नहीं कर सकता। उनकी इन सारी योग्यताओंमें अब एक यह भी जोड़ लीजिए कि वे नारी हैं। यह उनकी सबसे बड़ी योग्यता है, जिसमें कोई पुरुष उनकी बराबरी नहीं कर सकता । शान्तिकी स्थापना नारीका विशेषाधिकार है। सरोजिनी देवीने नारी जातिके इस विशेष गुणको अपने भीतर यत्नपूर्वक विकसित किया है । १९२१ में बम्बईके लज्जाजनक दंगे के अवसरपर उनका यह गुण पूर्ण रूपसे प्रकट हुआ था । उनकी वीरता तथा उनकी क्रियाशीलता सबके लिए प्रेरणाका स्रोत बन गई थी। उस समय वे जहाँ-कहीं गई, दंगाइयोंने अपने हथियार रख दिये । वे पूर्वी और दक्षिणी अफ्रिकामें शान्तिकी साक्षात् देवी सिद्ध हुई हैं । भारतीय उनका सर्वोत्तम स्वागत इसी प्रकार कर सकते हैं कि वे भगवान् से प्रार्थना करें कि वह उन्हें शान्तिका सन्देश प्रसारित करते रहने की शक्ति देने और इन दोनों समुदायोंको अटूट रूपसे जोड़कर एक करनेका साधन बनाये । भगवान् करे, जिस काममें सबल कहलाने-वाले पुरुष सफल नहीं हो सके, वहाँ अबला कहलानेवाली नारी सफल हो जाये ।

भगवान् विनम्रको, न कि अभिमानीको, अपना निमित्त बनाते हैं। पुरुष नाश करना जानता है । निर्माण नारीका विशेषाधिकार है । हमारी कामना है कि सरोजिनी हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच वास्तविक एकताकी स्थापना करनेमें ईश्वरके हाथका उपकरण बनें।

दिल्ली और नागपुर

दिल्लीने तो अपनी प्रतिष्ठाको मिट्टीमें मिला लिया । वहाँके दंगोंसे यह प्रकट होता है कि वहाँ असहयोगका लेश भी नहीं बचा है; क्योंकि सरकारके साथ असहयोग करनेका मतलब है लोगों में परस्पर सहयोगका होना । परन्तु दिल्लीमें पिछले सप्ताह सरकारके प्रति असहयोग न होकर हमारा ही परस्पर असहयोग दृष्टिगोचर हुआ । कांग्रेस और खिलाफत के लोग जनतामें शान्ति स्थापित नहीं कर सके। इसका श्रेय पुलिस और फौजको ही मिलना था । वे गौरवान्वित हुए और हम शर्मिन्दा । मुझे जो चिट्ठियाँ मिली हैं उनसे मालूम होता है कि हमारे स्वयंसेवकोंसे शान्ति स्थापित करनेकी दिशामें कुछ नहीं बन पड़ा और तब उन्होंने एक दर्जा उतरकर दूसरा उत्तम काम हाथमें लिया अर्थात् उन लोगोंकी सेवा-शुश्रूषाका काम, जो पुलिस द्वारा मारपीट किये जानेसे नहीं, बल्कि आपसमें ही लड़कर घायल हुए थे ।

इस सारे झगड़े की वजह बताई जाती है कुछ हिन्दुओं द्वारा एक मुसलमान युवककी कथित मारपीट । अगर वह लड़का मर भी जाता तो मुसलमान हाल ही कायम किये गये पंच-बोर्ड या सरकारी अदालतोंसे फैसला करा ले सकते थे ।

मान लीजिए कि कुछ हिन्दुओंने मुसलमान लड़केको पीटा और इसपर कुछ मुसलमानोंने हिन्दुओंपर हमला किया, तब दूसरे हिन्दुओंने, फिर वे कोई भी क्यों न हों, उसका बदला क्यों लिया ? मुझे जो चिट्ठियाँ प्राप्त हुई हैं उनके अनुसार यह लड़ाई सारे शहरमें जहाँ-जहाँ तक भारतीय बसे हुए हैं, फैल गई थी। उन्हीं चिट्ठियोंमें यह भी लिखा है कि अगरचे यह लड़ाई इतनी फैल गई थी फिर भी