पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/४२९

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होनेका दावा करती है, कोई भी दल उसीपर कब्जा करनेके लिए हिंसापर आमादा कैसे हो सकता है ? पत्रोंके लेखक अपनेको 'मेरा अनुयायी' बताते हैं । यदि वे अपनेको 'मेरा अनुयायी' बताकर अहिंसाके पुजारी होनेका दावा करते हों तो उन्हें परस्पर संघर्षके हर मौकेको टालना चाहिए, इसलिए उन्हें कांग्रेस या उसकी किसी समितिपर कब्जा करनेके लिए हथियार लेकर नहीं लड़ना चाहिए। पत्र- लेखक कहते हैं कि यद्यपि बड़ा बाजार क्षेत्रमें अपरिवर्तनवादियोंका निश्चित बहुमत है तो भी सम्भावना यह है कि स्वराज्यवादी या तो बड़ी तादादमें उनकी बैठकोंमें आ घुसेंगे या उनकी सभाएँ भंग करेंगे और इस प्रकार वहाँकी कांग्रेस कमेटीपर कब्जा कर लेंगे । फर्ज कीजिए कि ये सब इलजाम सही हैं तो भी अपरिवर्तनवादी लोग अहिंसात्मक उपायोंसे इसका प्रतिकार कर सकते हैं । वे स्वराज्यवादियोंकी सभाओं में कदम न रखें और अपना कार्यक्रम चलानेके लिए एक अलग संगठन बना लें -- बशर्ते कि उनका उद्देश्य कार्यक्रमको चलाना हो, कांग्रेसपर कब्जा जमाना नहीं । मैं वचन देता हूँ कि यदि अपरिवर्तनवादी काम करेंगे तो स्वराज्यवादियोंका काम उनके बिना चल ही न सकेगा। एक ही ईश्वर है, एक ही साध्य है और एक ही साधन है । रोगोंकी जड़ एक ही है, इसलिए उनका उपचार भी एक ही है । चाहे सरकार हो, चाहे स्वराज्यवादी, दोनोंके लिए एक ही रामबाण दवा है, अहिंसात्मक असहयोग । इसलिए यदि 'मेरे अनुयायी' बातें न करके अपना संगठन बनाकर काम करें तो बेहतर होगा । उन्हें अपनी सेवाओं द्वारा राष्ट्रके हृदय तक पहुँचने का रास्ता तैयार करना चाहिए। मैंने ये बातें अपरिवर्तनवादियोंसे इसलिए कही हैं कि उन्हींकी ओरसे इसका विरोध किया जा रहा है और उन्होंने अपनेको 'मेरा अनुयायी' कहकर पत्र लिखे हैं । मैं उनके द्वारा स्वराज्यवादियोंपर लगाये गये इलजामोंका न तो विश्वास करता हूँ और न अविश्वास । मैं तो स्वराज्यवादियोंको भी 'अपना अनुयायी' मानता हूँ, क्योंकि वे भी अपरिवर्तनवादियोंके समान कांग्रेसके ध्येय के समर्थक होने का दावा करते हैं । यदि वे यह कहेंगे और मैं समझता हूँ कि वे जरूर कहेंगे कि इसमें उनका कुछ भी कुसूर नहीं है तो मैं उन्हें भी वही उपाय बताऊँगा जो मैंने अपने अपरिवर्तनवादी अनुयायियोंको बताया है । 'मेरे अनुयायी' तो विपक्षीकी प्रतिक्रियाकी राह नहीं देखते, क्योंकि वे बदला नहीं लेते । जो प्रतिक्रियाकी राह नहीं देखते वे कुछ प्रत्याशा भी नहीं रखते। इसलिए वे कभी दुखी नहीं होते । यदि इसी बातको बिलकुल ही व्यावहारिक रूप देकर कहूँ तो कहना होगा कि जिस शख्सको चरखा कातना हो, हिन्दू-मुस्लिम एकता कायम करनी हो और अगर वह हिन्दू है तो जिसे अस्पृश्यता निवारण करना हो, उसे किसी संस्थाकी जरूरत नहीं है । संस्थाओंको उसकी जरूरत अवश्य हो सकती है; और उसकी सेवाकी जहाँ-कहीं जरूरत हो वह वहाँ खुशीसे अपनी सेवा अर्पित करेगा । एक स्वराज्यवादी मित्र कहते हैं कि महाराष्ट्रमें अपरिवर्तनवादियोंने केवल पशुबलके जोरपर अपना बहुमत बना रखा है और बरारमें तो उन्होंने ही मारपीट की थी । यदि बात ऐसी ही हो तो मैं अपरिवर्तनवादियोंसे कहूँगा कि वे क्षमा माँगें और वे जहाँ-कहीं पशुबल या