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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अनीतिपूर्ण तरीकोंसे पदाधिकारी बने हों, वहाँ अपने पदोंको त्याग दें और अपना काम फिर भी बराबर करते रहें । यह मानना सरासर बम है कि हम कांग्रेसकी प्रतिष्ठाका सहारा लिये बिना कारगर तरीकेसे सेवा नहीं कर सकते ।

एक कदम आगे

गुजरात प्रान्तीय कमेटीने चरखे-सम्बन्धी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रस्तावका समर्थन करते हुए उससे भी आगे जाकर पहले महीने में ३,००० गज सूत कातनेका अनिवार्य नियम बना दिया है और उसे जल्दी ही ५,००० गज तक बढ़ानेका विचार कर रही है । उसने अपने आदेशमें उस दण्डात्मक धाराको भी रख लिया है, जो अ० भा० कां० क०की बैठकमें हटा दी गई थी। मेरी हमेशा यह राय रही है कि हर प्रान्तीय कमेटीको यह अधिकार है कि वह अखिल भारतीय कमेटीकी अपेक्षाओंसे आगे बढ़कर काम करे । जो प्रान्त इतनी क्षमता रखता हो उसे ऐसा करना अपना कर्त्तव्य मानना चाहिए । यह दो हजार गज सूत एक किस्मका चन्दा है, जिसे अदा करना हर प्रतिनिधिका फर्ज है । यदि कोई ज्यादा देता है तो यह उसके लिए गौरवकी बात है। यदि कोई सदस्य अपना चन्दा न दे तो उसे सदस्यतासे हटाने में कोई बुराई नहीं है । इसलिए मुझे आशा है कि जो प्रान्त गुजरातका अनुसरण कर सकते हों, वे अवश्य करें । १५ अगस्तको यह बात स्पष्ट हो जायेगी कि कांग्रेस के प्रतिनिधियोंका चरखेमें कितना विश्वास है । उन्हें याद रखना चाहिए कि आचरणहीन श्रद्धा आत्माहीन शरीर -- मुर्दों -- की तरह है, जो जलाने या दफनाने के सिवा किसी मसरफका नहीं होता ।

हर प्रान्तमें चरखेके संगठनका दायित्व प्रान्तीय समितियोंपर है। उन्हें अविलम्ब उन प्रतिनिधियोंके नाम जान लेने चाहिए और देखना चाहिए कि वे साधन-सामग्री या जानकारी के अभाव में अपने कर्त्तव्य-पालनमें ढील न डालें । हमारी असहाय अवस्था तो दयनीय है; हम अपने सिरपर मंडरानेवाली इस बरबादीसे उसी अवस्थामें बच सकते हैं जब हमारी कौम पहलेकी तरह बुनकरों और कतैयोंकी कौम बन जाये । कांग्रेसने कमसे-कम कागजपर तो इस बातकी सचाईको अंगीकृत कर लिया है। अब देशके कोने-कोने के प्रतिनिधियोंसे यह आशा की जा रही है कि वे कताई और धुनाईमें प्रवीण हो जायेंगे, चरखा-शास्त्रकी सब बारीकियोंको जान लेंगे और अपने-अपने जिलों-में इस कार्यका संगठन करेंगे ।

यह आध घंटेका श्रम तो केवल शुरूआत है। लेकिन प्रारम्भमें ही ब्यौरेकी बातोंकी ओर ज्यादा ध्यान देनेकी जरूरत है -- जैसे रुई जमा करना और पहुँचाना, उसे धुनना और पूनियाँ बनाना और कातना । एकत्र सूतको प्रान्तीय केन्द्रोंमें जाँचना होगा । चरखोंपर भी ध्यान देना होगा । यदि चरखे और तकुए ठीक हों तो बहुत-सा वक्त अपने-आप बच जाता है और कातनेवालेको कातनेमें बहुत आनन्द आता है।

कांग्रेस के प्रतिनिधियोंपर तो कताईका यह कर्त्तव्य अ० भा० कां० कमेटीके प्रस्तावसे आयद होता है । पर दरअसल यह कर्त्तव्य हरएक मनुष्यपर लागू होता है, फिर चाहे वह कांग्रेसी हो या न हो । हरएक उत्साही कार्यकर्त्ता एक चरखा-क्लब