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आत्म-निरीक्षणका आमन्त्रण

चुने हुए धन्धे में, तथा जबतक निजी मित्र आश्रमको सहारा देते हैं, सत्याग्रह आश्रमके बच्चोंके साथ रम जाना, क्या देशके हितमें सबसे अच्छा काम नहीं रहेगा। कुछ भी हो, अपने मित्रों तथा साथी कार्यकर्ताओंको मेरी निश्चित सलाह यह है कि वे मेरी बातको अकाट्य मानकर कदापि स्वीकार न करें। मेरी सलाह उनके लिए हमेशा हाजिर है, किन्तु वह ली तो यदा-कदा ही जानी चाहिए।

ऊपरके पत्रको ध्यानसे पढ़ें तो उसमें लेखकने जिन बुराइयोंका इतना सजीव वर्णन किया है, उनका सर्वोत्तम उपाय भी उन्हींने सुझा दिया है। यदि मिथ्याचार, पाखण्ड और ईर्ष्या हमारे कार्यकर्ताओंमें घर कर गये है तो हमें इन दुर्गुणोंका उन्मूलन करना चाहिए और इसके लिए हमें अपना अन्तर टटोलना अनिवार्य है। हर हालतमें पाँच भले ईमानदार, स्वार्थत्यागी और श्रद्धावान कार्यकर्ता पचास हजार बेईमान, आलसी और श्रद्धाहीन कार्यकर्ताओंकी अपेक्षा अच्छे हैं। ये पचास हजार उन पाँचके काममें भी बाधक ही बनते हैं।

अब विशिष्ट मामलोंको लें।

जिला बोर्डों तथा नगरपालिकाओंका भी जहाँतक सम्बन्ध है, असहयोगियोंका इनमें प्रवेश तभी उचित माना जा सकता है, जब उनसे कांग्रेसके उद्देश्योंकी प्रगति हो और उसके संगठनमें सहायता मिले। यदि हम इन संस्थाओंके द्वारा खद्दरके कार्यक्रम या हिन्दू-मुस्लिम एकताका काम नहीं कर सकते अथवा अछूतों और राष्ट्रीय शालाओंकी सहायता सम्भव न हो तो हमें अवश्य ही इनसे बाहर निकल आना चाहिए और फिर दूर ही रहना चाहिए; यदि इनमें जानेसे असहयोगियोंमें पारस्परिक कलह तथा आमतौर पर मनमुटाव पैदा होता हो तो इसकी और भी ज्यादा जरूरत है।

कार्यकर्ताओंके भरण-पोषण सम्बन्धी प्रश्नके विषयमें, मैं यही मानता हूँ कि यह खर्च प्रान्तीय संगठनोंको उठाना चाहिए। केन्द्रीय संगठनका प्रान्तीय सेवाओंको नियन्त्रित तथा विनियमित कर पाना और उनका खर्च उठा पाना कभी सम्भव नहीं होगा। जब कोई प्रान्तीय संगठन स्थानीय रूपसे सहायता प्राप्त करने में असमर्थ हो जाये तब उसका अन्त होना ही ठीक है; क्योंकि सहायताका अभाव जाहिर करता है कि वह संगठन उस प्रान्तमें कभी लोकप्रिय नहीं था और यदि स्थानीय कांग्रेस संगठन लोकप्रिय नहीं है तो वह किस कामका? यदि किसी कांग्रेस संगठनकी सदस्य-संख्या बड़ी हो तो उसे प्रति-व्यक्ति चार आने के शुल्कसे ही आत्मनिर्भर हो जाना चाहिए। यदि उसकी सदस्य-संख्या अधिक न हो तो यह भी इसी बातका सूचक है कि वह लोकप्रिय नहीं है। मेरा यह निश्चित विश्वास है कि जहाँ-जहाँ कांग्रेसने खद्दरका काम अच्छा किया है, वहाँ-वहाँ उसका संगठन लोकप्रिय है और यदि वह अबतक वहाँ आत्मनिर्भर नहीं भी बना है तो शीघ्र ही बन जायेगा। किन्तु दूसरे लेखक, जिनके पत्रको मैंने उद्धृत किया है, कहते हैं: “चरखेमें मेरा विश्वास आज जितना कम रह गया है उतना कम कभी नहीं था। एक समूचे मध्यवर्गीय कुटुम्बका चरखेसे निर्वाह चलना असम्भव है, जबकि यह अत्यन्त स्पष्ट है कि इस प्रकार एक ही कामपर सारी शक्ति लगा देनेका अर्थ होगा अन्य सब काम बन्द कर देना। यह मुझे भारी फिजूलखर्ची और गलत अर्थनीति लगती है, ऐसे ही जैसे अंग्रेजीके मुहावरेके