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मॉर्लेने गोखलेसे एक बार यही करतब कर दिखाने के लिए कहा था । उन्होंने वह कर दिखाया था; किन्तु जितना समय उन्हें पूरे ५० कागज लिखने में लगता -- जिन्हें कोई पढ़ता भी नहीं -- उनका उससे अधिक समय उसको संक्षिप्त करनेमें लग गया। शंकरने अपना जगत् विख्यात सन्देश श्लोककी एक पंक्ति में दे दिया था : "ब्रह्म सत्यं, जगन्मिथ्या ।" सच्चा अनुशासन बोलने अथवा लिखनेकी इच्छापर अंकुश रखने में है । ऐसा मनुष्य तभी बोलेगा अथवा लिखेगा, जब उसके लिए बोलना और लिखना बिलकुल ही अनिवार्य हो जायेगा ।

पर कताईके साथ मुँहपर पट्टी तो रहती ही है। जब किसी पुरुष अथवा स्त्रीपर कताईकी धुन सवार होती है, तब उन्हें और किसी बात के लिए अवकाश ही नहीं रहता । हमारे अंग्रेज मित्रका एक तो जनसाधारणकी दशासे उतना अन्तरंग परिचय नहीं जितना हमारा है और दूसरे उनकी भावनाएँ भी हमसे भिन्न हैं । इसलिए वे कताईको केवल अवकाशका समय बिताने का एक शौक-भर समझते हैं और इसी तरह उसका उल्लेख करते हैं । पर हम तो कताईको इस युगमें और इस देशके लिए जिसमें हम रह रहे हैं, एक पवित्र कर्त्तव्य मानते हैं; और इस बातसे कताईको निराला ही महत्त्व मिल जाता है । उसे दूसरे धन्धोंकी श्रेणीमें नहीं रखा जा सकता। जब अंग्रेज इस तथ्यको समझ लेंगे, तब यहाँ उनकी हैसियत अजनबी देशमें शोषण के विचारसे रहनेवाले अजनबी की नहीं रह पायेगी । तब वे भी कातने लगेंगे, मनोरंजन या कुतूहलके लिए नहीं, वरन् जिस देशका वे नमक खाते हैं उसके प्रति अपना कर्त्तव्य निभाने के लिए। किन्तु हम उनसे ऐसी आशा तभी कर सकते हैं जब हम स्वयं अपने कामके द्वारा अपनी आस्थाको प्रमाणित कर दें ।

जनताका बाजार

चम्पारनके लोग भारत के सर्वाधिक भीरु लोगोंमें हैं। इधर कुछ दिनोंसे उन्होंने तनकर खड़े होने का प्रयत्न शुरू किया है। चम्पारन में आज भी छोटे-मोटे अधिकारियोंका सम्माननीय सज्जनोंको अपमानित करना या उनपर लात-घूंसे बरसाना आम बात है। बाबू राजेन्द्रप्रसादने एक संक्षिप्त पत्र भेजकर मुझे वे घटनाएँ बताई हैं, जिनके कारण बेतियाने अपने बाजारकी स्थापना की है और राज द्वारा स्थापित बाजारको त्याग दिया है । इस सम्बन्धमें जनताने जो अत्याचार सहा है उसकी मैं यहाँ चर्चा नहीं करूँगा। किन्तु एक घटना है, जिसे मैं अनदेखा नहीं कर सकता। कहा जाता है कि अधिकारियों द्वारा उकसाये गये कुछ लोग इस प्रकारके प्रवाद फैला रहे हैं कि मैं जनता के बाजारों की स्थापनाको पसन्द नहीं करता। मुझे इस प्रवादका खण्डन करनेमें जरा भी संकोच नहीं है। सच तो यह है कि इससे पहले मुझे इस बाजार के अस्तित्वकी भी जानकारी नहीं थी । किन्तु जनसाधारण के इस प्रकारके उपक्रमोंका मैं सदा स्वागत करूँगा । अतः मैं आशा करता हूँ कि बेतियाकी जनता सारे विरोध और असुविधाके बावजूद अपने इस अनुष्ठानपर दृढ़ रहेगी । उसे प्रलोभनों अथवा धमकियोंके आगे झुकना नहीं चाहिए ।