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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कंगाल उड़ीसा

जब-जब मैं भारतकी कंगालीकी बात सोचता हूँ, मेरी आँखोंके सामने वे जीवित नर-कंकाल खड़े हो जाते हैं, जिन्हें मैंने पुरीमें जगन्नाथजी के मन्दिरके बिलकुल आस- पास देखा था । मुझे लगता है कि वे मेरी भर्त्सना कर रहे हैं, क्योंकि मैं दरिद्रता-का जीवन अपनाने का व्रत लेकर भी उनकी तुलनामें काफी आरामका जीवन बिता रहा हूँ । उत्कल सम्मेलनके समक्ष आचार्य रायके[१]ओजस्वी भाषणने मेरे मनमें उड़ीसा के अपने दौरे के समय देखे हुए उन चित्रोंकी बेचैन बना देनेवाली स्मृतियोंको पुनः जगा दिया है । जनताके दारिद्रयको सिद्ध करनेके लिए डाक्टर रायने कुछ भयंकर आँकड़े पेश किये हैं। वे कहते हैं कि बिहार और उड़ीसा में प्रति हजार मृत्यु ३५ और जन्म १९.४ है । अतः दोनों प्रान्तोंमें मिलाकर हजार पीछे मृत्युसे जन्म १५.६ कम बैठता है। अकेले उड़ीसा में यह कमी और भी ज्यादा है अर्थात् हजार पीछे ३१। पाठक जरा सोचें कि इन आँकड़ोंका अर्थ क्या होता है । उड़ीसामें लोग हर साल हजार पीछे ३१ के हिसाब से मर रहे हैं। यदि हालत ऐसी ही रही जैसी अभी है तो उड़ीसाकी आबादी में यह कमी प्रति वर्ष बढ़ती ही चली जायेगी । उड़ीसा में अकाल पड़ते ही रहते हैं। लोगोंके पास खेतीके सिवा और कोई धन्धा नहीं है । ऐसे ही तथ्योंके कारण डा० राय चरखेके पक्षपाती बन गये हैं ।

इस्तीफे

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके तीसरे प्रस्तावके अनुसार कांग्रेसके प्रतिनिधियोंकी तरफसे इस्तीफे दिये जानेकी खबरें आ रही हैं। मैं इसे एक शुभ लक्षण समझता हूँ -- बशर्ते कि प्रतिनिधियोंने इस्तीफे अच्छी भावनासे दिये हों और इनका यह मतलब न हो कि अब वे कांग्रेसका काम नहीं करेंगे। देशकी हालत ऐसी नहीं है कि वह किसी भी कार्यकर्ताकी छोटी से छोटी सेवासे वंचित रह सके । पर वह सेवा उसकी शर्तों और अपेक्षाओंके अनुसार होनी चाहिए। इसीलिए हर प्रान्तके कार्य-कर्त्ताओंको अपना दिमाग ठण्डा रखना होगा और एक-दूसरेसे लड़े-झगड़े बिना काम करना होगा । जहाँ-कहीं बहुत ज्यादा इस्तीफे दिये जायेंगे वहाँ कार्यकर्त्ताओंको समितियोंके पुनर्गठनमें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। कई प्रान्तोंमें प्रान्तीय समितियोंके सदस्योंकी तादाद बहुत ही ज्यादा है । प्रान्तोंको तो प्रायः पूरा स्वायत्त शासन मिला हुआ है । इसलिए वे ऐसे नियम बना सकते हैं जिनसे समितियाँ आजकी अपेक्षा बहुत छोटी हो जायें । वे शोभाकी वस्तु होने के बजाय, सचमुच उपयोगी और भारी-भरकम होनेके बजाय सुचारु रूपसे काम करनेवाली होनी चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १७-७-१९२४
  1. १. आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय (१८६१ - १९४४ ) ।