पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/४३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वाधीनता एक ऐसा शब्द है जो शताब्दियोंके प्रयोगसे पुनीत हो गया है और इसलिए उसके बारेमें विभिन्न प्रकारके मत बन जाना कोई बड़ी बात नहीं है । परन्तु उसकी ऐसी परिभाषा तो कोई भी नहीं कर पायेगा जो सभी मतोंके अनुकूल पड़े। इसलिए मेरा सुझाव है कि " स्वराज्य " शब्दकी जगह कोई दूसरा ज्यादा अच्छा शब्द नहीं मिलेगा और उसकी एक ही सार्वभौम परिभाषा यह हो सकती है कि 'स्वराज्य भारतकी वह संस्थिति है जिसे किसी निश्चित समयपर भारतीय जनता प्राप्त कर लेना चाहती है ।'

यदि मुझसे कोई पूछे कि इस घड़ी हिन्दुस्तान क्या चाहता है तो मैं कहूँगा कि मुझे नहीं मालूम। मैं सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि मेरी कामना उसे इस बातके लिए इच्छुक देखनेकी है कि हिन्दुओं और मुसलमानोंके सम्बन्ध निश्छलतापूर्ण रहें, जनसाधारणको रोटी मिले और छुआछूत दूर हो। इस घड़ी तो मैं स्वराज्य की यही परिभाषा करूँगा। यह परिभाषा में इसलिए पेश कर रहा हूँ कि मैं एक व्यावहारिक आदमी होने का दावा करता हूँ। मैं जानता हूँ कि हम इंग्लैंड से अपनी राजनैतिक स्वाधीनता चाहते हैं । वह पूर्वोक्त तीन बातोंके बिना कभी नहीं मिल -- सकती फिर चाहे हमारे पास हथियार भी क्यों न हों और हम उसका प्रयोग भी जानते हों।

अपीलकर्तागण दूसरी बात यह चाहते हैं कि कांग्रेसके ध्येय-पत्र से वह अंश निकाल दिया जाये जो उसे 'शान्तिमय और न्यायोचित' साधनों तक ही मर्यादित करता है । मैं उनसे इस बात में सहमत हूँ, पर उन कारणोंसे नहीं जो उन्होंने पेश किये हैं; बल्कि मेरे कारण ठीक उनसे उलटे हैं। वे कहते हैं : साधन आखिरकार साधन ही हैं। मैं कहूँगा : आखिरकार साधन ही सब कुछ हैं। जैसा साधन वैसा साध्य । हिंसापूर्ण साधन हिंसात्मक स्वराज्य देंगे। ऐसा स्वराज्य सारे संसारके लिए और खुद भारतके लिए भी एक खतरा ही होगा। फ्रांसने हिंसात्मक साधनोंसे अपनी स्वतन्त्रता हासिल की थी। वह अबतक अपने हिंसाकाण्डकी भारी कीमत चुका रहा है । निकट भविष्य में उसे अपनी बर्बर आफ्रिकी सेनाकी दयापर मोहताज रहना पड़ेगा । मैं मनुष्य-मनुष्य के बीच पूर्ण समानताका कट्टर समर्थक हूँ, पर मेरा यह विश्वास मुझे उस हदतक नहीं ले जाता जहाँतक वह फांसको ले गया। आफ्रिकियोंको सेनामें भरती करके प्रशिक्षित करना उनके समानताके सिद्धान्तकी स्वीकृतिका प्रमाण नहीं है, बल्कि वह अपनी एकछत्र राज्य सत्ता बनाये रखनेके लोभका प्रमाण है । साधन और साध्यके बीच ऐसी कोई दीवार नहीं होती जो दोनोंको एकदूसरेसे अलग करती हो। हाँ, उस सृष्टिकर्त्ताने हमें साधनों पर नियन्त्रण रखनेकी शक्ति प्रदान की है (सो भी एक हदतक) किन्तु साध्यपर नहीं । ज्यों-ज्यों हम साधनका साक्षात्कार करते जायेंगे त्यों-त्यों हमें साध्यका साक्षात्कार होता जायेगा। यह एक ऐसा नियम है जिसमें किसी तरहका अपवाद नहीं हो सकता। ऐसा विश्वास रखनेके कारण मैं देशको उन्हीं साधनोंपर कायम रखनेका प्रयत्न करता रहा हूँ जो कि बिलकुल ' शान्तिपूर्ण और न्यायोचित ' हैं ।