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सभापति कौन हो ?

पूर्ण त्यागका और हिन्दू समाजसे छुआछूतको एक पाप समझने के आग्रहपूर्वक निवेदनका एक अन्वेष प्रबन्ध मात्र होगा । यदि ये बातें देशमें उत्साहका संचार नहीं कर सकतीं तो मैं एक निकम्मा सभापति सिद्ध होऊँगा । ऐसे किसी व्यक्तिको सभापति बनानेसे कांग्रेसका काम कैसे चलेगा, जो समूचे राष्ट्रसे एक ऊटपटाँग काम करानेकी योजना बनाये । हम अपनी राय बेखटके ऐसे शख्स के खिलाफ देंगे -- फिर वह अपने कथनके प्रति कितना ही सच्चा और अपनी तजवीजके मुताबिक काम चलानेमें कितना ही माहिर क्यों न हो। हम उसे अपना सभापति नहीं बनायेंगे, क्योंकि वह हमारे कामका न होगा। मुझपर यही बात चरितार्थ हो सकती है।

ऐसी हालतमें मुझे चाहिए कि मैं अपना चुनाव न होने दूँ। जिन सज्जनोने मेरा नाम पेश किया है, हूँ कि उनके प्रेमकी मैं कद्र करता हूँ । पर मैं उनसे निवेदन करता हूँ कि वे मेरी स्थितिको समझें और मेरे साथ सहानुभूति रखते हुए मेरा नाम वापस ले लें।

तो अब सभापति पदके लिए दो नाम लेने लायक हैं -- सरोजिनी नायडू और डाक्टर अन्सारी । जब मैंने डा० अन्सारीका नाम लिया तब एक मित्रने कहा कि इन चार सालोंमें डाक्टर अन्सारी चौथे मुसलमान सभापति[१] होंगे। पर मैं इसे कोई अड़चन नहीं मानता । हिन्दुओंको चाहिए कि वे एक मुसलमानको अध्यक्ष बनाकर हिन्दू-मुस्लिम एकताकी अपनी दृढ़ अभिलाषाका परिचय दें । हिन्दू और मुसलमान दोनों जातियोंमें जो कुछ थोड़े निष्पक्ष नेता हैं, डाक्टर अन्सारी उनमें से एक हैं। इसलिए सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम एकता की दृष्टिसे डा० अन्सारीका चुनाव सबसे बढ़िया होगा ।

लेकिन मैं तो वर्तमान कठिन अवसरपर श्रीमती सरोजिनी नायडूको अध्यक्ष बनाने के पक्षमें हूँ। वे स्थायी हिन्दू-मुस्लिम एकताकी हिमायती हैं। मुसलमान उन्हें अविश्वासकी दृष्टिसे नहीं देखते। अभीतक कोई भारतीय महिला कांग्रेसकी अध्यक्ष नहीं हो सकी है । जो आदर देशकी बहनोंको बहुत पहले मिल चुकना था, यह उसका सर्वोत्कृष्ट अवसर है । पूर्वी और दक्षिणी आफ्रिकामें उनके द्वारा की गई सेवाओंकी याद अभी हमारे दिलोंमें ताजा बनी हुई है। उनका पुरस्कार हम इससे बढ़कर दूसरा नहीं दे सकते कि आगामी अधिवेशनके लिए सरोजिनी देवीको अपना अध्यक्ष चुनें। इससे हमारे प्रवासी भारतीय भाइयोंका पक्ष पुष्ट होगा। वे खास तौरपर इस बातको महसूस करेंगे कि हम उनके हितोंकी उपेक्षा नहीं कर रहे हैं। दोनों उप-महाद्वीपों में सैकड़ों यूरोपीयोंने हमारी इस महिला राजदूतके प्रति बड़ा ही सौजन्य और सहानुभूति प्रदर्शित की है । हमारा यह चुनाव उनके इस सद्व्यवहार और सहानुभूतिके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करना होगा । यह हमारे इस निश्चयका सूचक होगा कि हम प्रवासी भाइयोंके कामको अपना काम मानते हैं और आखिरी बात यह कि हमें इस बार एक निष्पक्ष सभापतिकी आवश्यकता है । मैं तो खुल्लमखुल्ला कहता हूँ कि मैं बिलकुल

  1. १. अभिप्राय सन् १९२१ से १९२३ तक कांग्रेसके अध्यक्षोंमें हकीम अजमलखाँ ( १९२१ ), मौ० अबुल कलाम आजाद (१९२३, विशेष अधिवेशन दिल्ली ) और मौ० मोहम्मदअली (१९२३) के अध्यक्ष होनेसे है।