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वर्णाश्रम या वर्णसंकर ?

ही हरएकको अपने कर्त्तव्यके प्रति जाग्रत करना है । वह हरएकको अपना धर्म या कर्त्तव्य अच्छी तरह पालन करनेकी सामर्थ्य देता है । जहाज जब शान्त समुद्र में चल रहा हो तब हरएक कर्मचारी यथोचित ढंगसे अपना-अपना काम करनेमें लगा रहता है; पर जब जहाज एक घोर तूफानमें पड़ जाता है और डूबने लगता है तब हर शख्सको लोगोंके प्राण बचाने में सहायता देनी पड़ती है-- क्योंकि उस समय वही सबसे आवश्यक कार्य हो जाता है ।

हमें एक बात और याद रखनी चाहिए। सारे संसारके साथ भारत भी आज जगद्व्यापी व्यापार-रूपी काल सर्पकी लपेटमें जकड़ गया है । सिपाहियोंके बानेमें एक बनिया जाति उसपर शासन करनेका अधिकार जता रही है । उसकी जकड़से उसे छुड़ाने के लिए हिन्दुस्तानके तमाम ब्राह्मणोंको अपनी सारी विद्या-बुद्धि और साधन-सामग्री लगा देनी पड़ेगी । इसलिए उसके पण्डितों और सैनिकोंको अपनी तमाम विद्या और शस्त्र-कौशलको व्यापारिक आवश्यकताओंकी पूर्ति में खर्च करना होगा। इसलिए उन्हें चरखा कातना सीखकर रोज उसे चलाना ही होगा, तभी वे सचाईके साथ अपने धर्मका पालन कर सकेंगे।

मुझे उन लोगोंके लिए भी, जो नीति और इज्जतके साथ अपनी जीविका चलाना चाहते हैं, हाथ-बुनाईकी सिफारिश करनेमें कुछ संकोच नहीं होता । उन ब्राह्मणों, क्षत्रियों तथा दूसरे लोगोंको जो आजकल अपने वंश-परम्परागत कर्मोंको छोड़कर धन कमाने के पीछे पागल हो रहे हैं, मैं जुलाहेका ईमानदाराना और (उनके लिए) प्रामाणिक काम सुझाता हूँ और उन्हें दावत देता हूँ कि आइए, फिरसे अपने-अपने धर्म-कर्मको अपनाइए और करघेसे जो कुछ आमदनी हो उसीपर सन्तोष कीजिए । जिस प्रकार खाना, पीना, सोना आदि कर्म सब जातियों और मजहबोंके लिए सामान्य हैं, उसी तरह जबतक यह संकरता, स्वार्थमय लोभ और उसके फलस्वरूप कंगाली कायम है, तबतक कताई भी बिना अपवाद हरएकके लिए सामान्य कर्म होनी चाहिए । इसी कारण मेरी यह प्रणाली वर्णसंकर बनानेकी अर्थात् अधिक गोलमाल पैदा करनेका नहीं, बल्कि वर्णाश्रमकी स्थापना करके उसे विशुद्ध और अधिक सुरक्षित बनानेकी है ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १७-७-१९२४