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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रचार इस हदतक करनेके लिए, जिससे मिलें उखड़ जायें, खुद पत्रलेखक तथा दूसरे हिस्सेदारों और मिलोंके डायरेक्टरोंको जनताके साथ पूरा सहयोग करना होगा । पत्र-लेखकको यह बात जानकर तसल्ली हो सकती है कि मिलके कपड़ेपर असर तो तब पड़ेगा जब खादी लगभग ६० करोड़ रुपये के विदेशी कपड़ेकी जगह ले ले । परन्तु मैंने जिन कारणोंका उल्लेख इस पत्र में किया है उनके अनुसार हमें मिलका कपड़ा छोड़कर केवल खादीकी ही बात सोचनी चाहिए। हमारी मिलोंको मेरे तथा दूसरे किसीके आश्रयकी जरूरत नहीं है। उनके पास खुद अपने आढ़तिये हैं और अपने मालके विज्ञापनकी अपनी निराली तरकीबें हैं । इसलिए जो लोग कांग्रेसमें हों उन्हें खादीके बदले मिलका कपड़ा पहननेकी छूट देना मानो खादी उद्योगका नाश करना है । इससे पहले कि खादीका असर कपड़े के बाजारपर हो, उसे जितना रक्षण दिया जा सके, दिया जाना चाहिए ।

यह तो हुआ पूर्वोक्त पत्रलेखक तथा उनके सदृश विचार रखनेवाले लोगोंके चित्तकी शान्तिके लिए । परन्तु यहाँ यह कह देना चाहिए कि यदि यह पत्र मिलों और मध्यम वर्गपर आनेवाली विपदाके अज्ञानपूर्ण भयसे न लिखा गया होता तो मैं इसे हृदयहीनताका नमूना कहता । " जिन्हें अपनी इज्जत-आबरूका कुछ भी खयाल नहीं होता और जो किसी भी उपायसे अपना पेट पाल सकते हैं " -- इस प्रकार निचली श्रेणीके लोगोंका परिचय देनेमें पत्रलेखकका मन्शा क्या है ? क्या उन्हें यकीन है कि निचले दर्जेके लोगोंको अपनी इज्जत-आबरूका कुछ विचार नहीं होता ? क्या उनके हृदय नहीं होता और उसमें भाव भी नहीं होते ? क्या कड़वे और तीखे शब्द उन्हें बुरे नहीं मालूम होते ? उनके निचले होनेका कारण सिवा उनकी गरीबीके और क्या है ? और क्या उनकी गरीबीके लिए मध्यमवर्ग जिम्मेदार नहीं है ? मैं पत्र लेखकसे यह भी कहना चाहता हूँ कि "निचली श्रेणीके लोग" किसी भी उपाय से अपना पेट नहीं भर पाते, यही नहीं बल्कि उनका एक बड़ा भाग अध-पेट रहकर जिन्दगी काट रहा है । यदि मध्यमवर्ग निचले वर्गके लिए स्वेच्छापूर्वक नुकसान बरदाश्त करे तो कहना होगा कि उसने अबतक शोषणमें जो सहयोग दिया, उसका देरसे ही सही थोड़ा-सा बदला चुकाया है। निचले कहे जानेवाले वर्गसे ऊँचे होने का यह अभिमान और उसके फलस्वरूप उत्पन्न होनेवाली उनके कष्टोंके प्रति निष्ठुरता ही स्वराज्यके रास्तेमें विघ्नरूप है और जीवनदायी चरखेकी प्रगतिको रोकती है। मैं पत्रलेखकसे प्रार्थना करता हूँ कि वे सारी स्थितिपर सर्वसाधारणकी दशाका ध्यान रखकर विचार करें और चरखेको अपनाकर अपने से कम सुखी देशभाइयोंके साथ अपनेको एकात्म करें।

अन्तमें पत्रलेखकको यह बात भी याद रखनी चाहिए कि यदि समूची मानवताके प्रति अपनी मानवीयता के आधारपर मुझसे निचले वर्गकी बलि देकर मिलोंके प्रति दयाभाव रखनेकी बात कही जाये तो उसी कारणसे विदेशी मिलोंके प्रति भी दया-भाव रखनेका आग्रह किया जा सकता है; जैसा कि कितने ही मित्रोंने किया भी है । परन्तु यदि यह बात सच हो कि विदेशी मिलोने हमारी साधारण जनताकी सुख-समृद्धिका नाश किया है -- और यह निस्सन्देह सच है। -- तो विदेशी मिलवालोंका नुकसान होते हुए भी मानव-दयाकी खातिर सर्वसाधारणको फिरसे चरखा ग्रहण